पतझड़ के आने से क्यों डरता है मन बाबरे
जीवन का नाम ही तो है सुख दुःख का पैमाना
खिलेंगे कल तेरे मन में भी खुशियों के फूल
मत मुरझा बसन्त को दिल में घर बनाने तो दे
प्रेम से ही तो बहती है सुख की अनमोल नदियाँ
प्रेम से ही तो खिलता है मन का सूना आँगन
प्रेम से ही जीवन है प्रेम से ही तो बहती सरिता
मत उदास होना तुम बसंत का स्वागत तो करो
सुख-दुःख है जीवन की रीत कौन बच पाया है
दुःख से लड़कर ही तो स्वाभिमान बच पाया है
प्रेम है चाँद-तारे ,प्रेम में ही तो विश्व समाया है
प्रेम से संवार लो जीवन प्रेम का मंथन तो करो
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़