कविता

/ जीना है तो सीखना है /

जीना है तो सीखना है
बहुत बड़ी बेमतलबी है यह दुनिया
जब हम चुप रहते हैं तो
अन्याय का शिकार हो जाते हैं
यदि अन्याय के विरूद्ध आवाज़ उठाते हैं तो
विरोधी का नाम लेना पड़ता है
जो शासन सत्ता के नज़दीक हैं
बातें सभी चुपचाप स्वीकार करते हैं
जीत उसी का होता है
अकर्म – कुकर्म सभी सकर्म हो जाते हैं
दर्जे की जिंदगी के मोह में
कभी – कभी सच झूठ बनता है और
झूठ सच का रूप धारण करता है
यह वेष आसानी से
उतर जाता ही नहीं
असली बनकर अकड़ दिखाता है

बहुत कठिन है,
सबको साथ ले जाने में
दूसरे की तरह व्यवहार करना,
मुश्किल है नकली बनकर रह जाना और
बातें छिपाकर आगे के कदम लेना,
कई लोगों का तो
यह आसानी बात है
अपने आप में आ जाती है
फटाफट सीख लेते हैं
जीने की चालाकी कला,
जो यथार्थवादी है वह
दूसरे की नज़रों से गिर जाता है
परेशानी होती है
अपना रास्ता बनाकर चलना
मंजिल तक खड़े रहना ।

— पैड़ाला रवीन्द्र नाथ ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।