जनता है लाचारी में
सड़कों पर है शोर बहुत,
पहरेदारी जोर बहुत।
लगा रहे आना जाना,
कलगीधारी मोर बहुत।
सैलाबों सा है इन्सां ,
छोटी सी गलियारी में ।
पेट पीठ से सटी हुई,
जनता है लाचारी में ।
लटके चारो ओर यहां,
पोस्टर है नेताओं के ।
और दबंगी जाल यहां ,
वोटों के क्रेताओं के ।
बेबस है मजदूर यहां ,
मेहनतकश बेकारी में।
जयकारों से मिली मजदूरी
अटती कब है थारी में।
— शिवनन्दन सिंह