कविता

जब वक्त थम सा गया

एक बार ही मिली नजरें तो दिल उसी पर आ गया
मिलने के लिए उसी से दिल बेताब होने  लगा
ख्वाबों में भी वही खयालों में भी वही
लेकिन अब ढूंढना उसे मेरा एक ही काम ही रह गया
वही आंखे,वही अदाएं ,सरका दुपट्टा संभालने की
दिखती थी वहीं हर शहर,हर गली
हर पल हर घड़ी ही
छाई रहती थी मेरे ही खयालों में
दिखती नहीं थी कहीं
क्या करूं कहां ढूंढू उसे मेरे खयालों की रानी को
अब तो सहना ही मुश्किल था इस जुदाई को
और वह मंजर आ ही गया जब देखा उसे नहाते हुए झरने पर
आंखें जम गई वहीं और दिल थम गया कहीं
लगा था अब तो वक्त ही थम सा गया था
और अरमानों में हालचल सी आ गई थी
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।