कविता

मूरख

हे मुरख तुम्हें मेरा प्रणाम
तुमसे है यह जग बदनाम
उल्टा सीधा तेरा हर काम
गाँव जवार तुमसे परेशान

विद्यालय का कभी मुँह नहीं देखा
कॉपी कलम से नहीं तुम लेखा
तुमसे है जग अब तक अनजान
मुरखिस्तान का तुम मेहमान

कभी सुधरने का प्रयास ना करता
हर अच्छे का आलोचना तुँ करता
दंड का सहभागी तुम ही बनता
कोर्ट का चक्कर तुम ही करता

घर परिवार का तुम दुःखदायी
हर बात पर करता हाथापाई
तुमसे ही कुदरत हलकान
जाति पाँति तेरे ही नाम

मूरख बन मतदान तुँ करता
लोभ व लालच में मरता
देश राज्य तुमसे  अनजान
मूरख बन करता है हैरान

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088