स्त्री शिक्षा के जनक : महात्मा ज्योतिबा फुले
11 अप्रैल1827 में महाराष्ट्र में जन्मे महान समाजसेवी, क्रांतिकारी विचारक, कर्म योगी। स्त्री शिक्षा के जनक तथा नवभारत के निर्माता महात्मा ज्योतिबा फुले एक सच्चे राष्ट्र निर्माता थे।उनका मानना था कि जब तक समाज में जातिवाद खत्म नहीं होगा तब तक देश की उन्नति संभव नहीं है। महात्मा ज्योतिबा फुले नारियों को सामाजिक अधिकार दिलाना चाहते थे।इसलिए वे सर्वप्रथम उन्हें शिक्षित करना चाहते थे। वे स्वस्थ समाज का निर्माण करना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने जीवन भर कड़ा संघर्ष किया। भारत में अछूत उद्धार एवं महिला शिक्षा हेतु उन्होंने जीवन भर कठोर संघर्ष किया। जिसके लिए उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को शिक्षित कर देश की प्रथम शिक्षिका के रूप में महिला शिक्षा की क्रांति का सूत्रपात किया। ज्योतिबा फुले माली समाज के थे। फूलों की माला एवं गजरे बनाने के कारण हुए “फुले” के नाम से जाना जाता था। वे एक उच्च विचारों के धनी तथा बहुत ही बहादुर इंसान थे। वे दलितों, महिलाओं, गरीबों और पिछड़ों के लिए संघर्ष करने वाले एक सच्चे जननायक कर्मयोगी एवं महात्मा थे।
अपने ब्राह्मण मित्र की शादी में जाने पर उन्हें जातिगत अपमान किया गया तब उनके दिल को धक्का लगा तथा काफी आहत हुए। तब उन्होंने माना कि जब तक समाज में जातिवाद खत्म नहीं होगा तब तक देश की उन्नति संभव नहीं है। उन्होंने माना ऐसा धर्म किस काम का जो मनुष्य को मनुष्य के बीच भेद करता हो। मात्र सातवीं कक्षा तक पढ़े थे किंतु उनके विचारों को विश्व के विश्वविद्यालयों में पढ़े जाने लायक। विश्व के विद्वान डॉ. बी.आर. अंबेडकर उन्हें अपना सामाजिक गुरु मानते थे। ज्योतिबा फुले विचारक ही नहीं बल्कि महान समाज सुधारक, साहित्यकार थे। उनका मानना था- इंसान को इंसान बनाने का जो मंत्र है वह शिक्षा है। ज्योतिबा फुले शिक्षा के बारे में कहते थे शिक्षा सही और गलत का जो अंतर सिखाती है वही शिक्षा है। भारत में फैली हुई सामाजिक बुराइयों में जातिवाद हेतु उन्होंने कठोर संघर्ष किया।अछूत उद्धार , नारी शिक्षा के लिए सर्वप्रथम अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को पढ़ा कर शिक्षिका बनाई और भारत में पहली बार 1 जनवरी 1848 में बालिका विद्यालय खोला। जिसका नाम “अहिल्या आश्रम” था।उन्होंने उस जमाने में अंग्रेज सरकार से गांवों में अनिवार्य शिक्षा की मांग की थी। वे कहते थे-“विद्या विना मती गई मती बिना नीति गई नीति बिना गति गति गति बिना बीत गया वित्त बिना शूद्र गई इतने अनर्थ हुए का विद्या के कारण।”
उनकी प्रारंभिक परीक्षा मिशनरी स्कूल में अंग्रेजी में हुई थी। ईसाई पादरी लेजीट के सहयोग से। उर्दू फारसी के शिक्षक गफ्फार मुंशी थे।वे थॉमस पाइन के विचारों से बहुत प्रभावित थे। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “द राइट्स ऑफ मैन” को खूब मन से पढ़ा और समझा और सीखा 1848 में जब वह मात्र 21 वर्ष की उम्र के थे।
ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने पूरा जीवन एक मिशन के रूप में समाज सुधार के कार्य हेतु लगा दिया। उन्होंने 24 सितंबर 1873 ईस्वी में “सत्यशोधक समाज”(सत्य की खोज करने वाला) की स्थापना की।
उन्होंने दलित शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया था। उन्होंने खुलकर के बाल विवाह का विरोध एवं विधवा विवाह का समर्थन किया। मूर्ति पूजा का, जाति व्यवस्था का जमकर विरोध किया।
शिवाजी की पहली बार जयंती ज्योतिबा फुले ने मनाई थी वर्ष 1819 तर में शिवाजी पर प्रथम पुस्तक भी ज्योतिबा फुले नहीं लिखी थी शिवाजी को कुलवाड़ी(खेती करने वाले) भूषण की उपाधि दी थी। उन्हें मारने की हेतु कई षड्यंत्र हुए। रोडे और धोनीराम कुम्हार जैसे व्यक्ति को भेजा गया। बाद में धोनीराम कुम्हार उनका शिष्य बन गया और विद्वान बना।
ज्योतिबा उस समय के एक बड़े ठेकेदार भी थे।उन्होंने अंग्रेज सरकार से एग्रीकल्चर 12 पास करवाया था।
उन्होंने समाज में बहुत ही महान कार्य की 28 जनवरी 1853 को फुले दंपत्ति द्वारा देश में प्रथम बार “शिशु पालन घर” की शुरुआत की।1863 में इस दंपत्ति ने अनाथालय की शुरुआत की ।जिसके अंतर्गत गर्भवती विधवा महिलाओं का शरण एवं संरक्षण दिया।16 नवंबर 1852 को मेजर कैंडी ने ज्योतिबा फुले को शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने की वजह से सम्मानित किया। 30 नवंबर 1880 को उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता हेतु जोरदार वकालत की। 11 मई 1888 के दिन ज्योतिबा फुले को मुंबई में “मुंबई देशस्थ मराठा ज्ञान धर्म संस्था” में महात्मा की उपाधि प्रदान की गई थी। उन्होंने1870 में प्रथम पुस्तक “गुलामगिरी” लिखी थी। “किसानों का हंटर”, “राजा भोसला का पखड़ा”,”अछूतों की कैफियत”,”सार्वजनिक सत्य पुस्तक, छत्रपति शिवाजी ,सार्वजनिक सत्य ग्रंथ, ब्राह्मणों का चातुर्य आदि प्रमुख ग्रंथ लिखे।
उन्होंने काशीबाई नामक विधवा ब्राह्मणी के गर्भवती से उत्पन्न पुत्र (यशवंत) को गोद ले लिया था। यशवंत को पढ़ा लिखा कर डॉक्टर बनाया था।उनके बारे में डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने कहा था-“महात्मा फुले मॉडर्न इंडिया के सबसे महान शुद्र थे।जिन्होंने पिछड़ी जाति के हिंदुओं को अगड़ी जाति के हिंदुओं का गुलाम होने के प्रति जागरूक कराया, जिन्होंने यह शिक्षा दी कि भारत के लिए विदेशी हुकूमत से स्वतंत्रता की तुलना में सामाजिक लोकतंत्र कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।”
— डॉ. कान्ति लाल यादव