बचपन से बड़े होने तक
हम सभी ने लैला मजनू
हीर रांझा, सोनी महिवाल
के किस्से सुने, पड़े और
फिल्मों में देखे हैं
और यही जाना की सच्चा प्रेम
बस यही है जो इन जोड़ियों ने किया
क्योंकि प्रेम तो एक खूबसूरत
एहसास है जो दिल से दिल
का होता है न की शब्दों का
पर समय के साथ जैसे
सब बदला प्रेम का रूप , प्रेम का नाम, प्रेम का एहसास भी बदल गया और
रह गया सिर्फ
तो बस एक शब्द भर
जिसे बोल कोई भी
किसी को भी छल सकता है
उस का फायदा उठा सकता है
उसके दिल और ज़ज़्बातों से
खेल सकता है
और यूँ
प्रेम में न एहसास रहे न भाव
बस बन गए शब्द यूँ आम से
चलते फिरते मॉल, बगीचे, सिनेमा घर,
पब, डिस्को , पार्टी ….हर जगह
जहां प्रेम का नामोनिशान नहीं
बस मूक शब्द बोलते हैं
बिन नाम बिन एहसास बिन भाव बेनाम से।।
— मीनाक्षी सुकुमारन