पृथ्वी की त्रासदी
मैं धरा हूं धैर्य धारण करूंगी,
वसुधा हूं धन-धान्य से परिपूर्ण करूंगी,
रत्नगर्भा हूं रत्नों का दान मुझे करना ही है,
लेकिन मुझे बिगाड़ा तो तुम्हें बिगाड़ने में
तनिक भी देर न करूंगी!
मैं धरती मां हूं, बहुत बड़ा दिल है मेरा,
आंचल में छिपाकर प्यार भी दूंगी घनेरा,
तुम भी संतान की तरह अपनी औकात में रहो,
मुझे अंधकारमय करोगे तो फिर सोच लो,
कैसे मेरी छत्रछाया में देख पाओगे
सुख का सवेरा!
मैं भूमि हूं, छिपे हैं मुझमें अंकुर कई,
मीठे फल चाहो, मीठे फल दूंगी,
खट्टे-चरपरे चाहो, वह भी दूंगी,
तुम नफरत का जहर बोना चाहो,
तो तुम्हें वही तो मिलेगा, जो तुमने बोया है!
तुम मुझे पृथ्वी कहते हो,
पृथ्वी दिवस भी मनाते हो,
साथ ही मुझमें हरियाली की जगह
प्लास्टिक और पॉलिथिन का
जहर उगाते हो,
पर अमृत चाहते हो, कैसे पाओगे!
पृथ्वी की त्रासदी, दो मुझे प्लास्टिक से आजादी
पृथ्वी पर हरियाली, जीवन की खुशहाली