कविता

पृथ्वी की त्रासदी

मैं धरा हूं धैर्य धारण करूंगी,
वसुधा हूं धन-धान्य से परिपूर्ण करूंगी,
रत्नगर्भा हूं रत्नों का दान मुझे करना ही है,
लेकिन मुझे बिगाड़ा तो तुम्हें बिगाड़ने में
तनिक भी देर न करूंगी!

मैं धरती मां हूं, बहुत बड़ा दिल है मेरा,
आंचल में छिपाकर प्यार भी दूंगी घनेरा,
तुम भी संतान की तरह अपनी औकात में रहो,
मुझे अंधकारमय करोगे तो फिर सोच लो,
कैसे मेरी छत्रछाया में देख पाओगे
सुख का सवेरा!

मैं भूमि हूं, छिपे हैं मुझमें अंकुर कई,
मीठे फल चाहो, मीठे फल दूंगी,
खट्टे-चरपरे चाहो, वह भी दूंगी,
तुम नफरत का जहर बोना चाहो,
तो तुम्हें वही तो मिलेगा, जो तुमने बोया है!

तुम मुझे पृथ्वी कहते हो,
पृथ्वी दिवस भी मनाते हो,
साथ ही मुझमें हरियाली की जगह
प्लास्टिक और पॉलिथिन का
जहर उगाते हो,
पर अमृत चाहते हो, कैसे पाओगे!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “पृथ्वी की त्रासदी

  • *लीला तिवानी

    पृथ्वी की त्रासदी, दो मुझे प्लास्टिक से आजादी

  • *लीला तिवानी

    पृथ्वी पर हरियाली, जीवन की खुशहाली

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