लघुकथा

शर्मिन्दगी

अतीत की स्मृतियों में डूबते उतरते रहने वाली सविता को अक्सर ये घटना याद आती रहती थी।ज़िन्दगी में कुछ घटनाएं या यादें ऐसी होती हैं जो इन्सान के मानस पटल पर हमेशां के लिए अंकित हो जाती हैं और भुलाए से भी नही भूलती…
तब वो सातवीं कक्षा में गई थी स्कूल का पहला दिन था।टीचर जी कक्षा में आई।उन्होंने बोला,”आज हम एक दूसरे के बारे में जानेंगे।”फिर उन्होंने सब बच्चों से बारी बारी से उनका नाम ,उनके माता पिता का नाम और उनके पापा क्या काम करते हैं.. पूछना शुरू कर दिया।सब बच्चे बड़ी खुशी से और उत्सुक होकर सब कुछ बता रहे थे।उस साल तीन लड़कियां उस क्लास में किसी और स्कूल से नई आई थी।
उनमें से एक लड़की, जब उसकी बारी आई तो टीचर जी ने उसको खड़ा किया। बड़ी सुन्दर सी गोरी चिट्टी, भूरी आंखों वाली लड़की दूध जैसी सफेद यूनिफॉर्म पहने हुए थी।वो उठी तो टीचर जी ने उसका नाम पूछा।उसने अपना नाम राधा बताया और फिर उसने अपने मम्मी पापा का नाम भी बता दिया।फिर टीचर जी ने पूछा,”तुम्हारे पापा क्या काम करते हैं?” इस बात पर वो एक दम से चुप हो गयी और गर्दन झुका ली।टीचर जी ने जब दो तीन बार पूछा तो उसकी आँखों में आँसू आ गए।टीचर जी ने उसको अपने पास बुलाया और गले लगाकर प्यार किया।फिर से पूछा,”बताओ बेटा क्या बात है,क्यों रो रही हो?”टीचर जी के इस तरह प्यार से पूछने पर उसने बोला,”टीचर जी मेरे पापा झाड़ू लगाने और कूड़ा उठाने का काम करते हैं।”
“ओह तो ये बात है तुम्हे ये बताने में शर्म आ रही थी इसीलिए तुम बताना नही चाह रही थी। देखो बच्चो कोई भी काम बुरा नहीं होता और मेहनत करने में कोई बुराई नहीं।तुम्हारे पापा मेहनत करते हैं, तभी तो तुम आज इस स्कूल में इस कक्षा में आ पाई हो। कम से कम वो किसी से मांग तो नही रहे। बहुत से ऐसे भी लोग हैं जो हट्टे कट्टे होते हुए भी भीख मांगते हैं क्योंकि वो काम नहीं करना चाहते।”
टीचर जी की बातें सुन कर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी और उस दिन के बाद उसे अपने पापा के काम को लेकर कभी भी शर्मिंदगी नहीं हुई।

— रीटा मक्कड़