श्रद्धा
राजस्थान के जयपुर शहर में मनु एक टेलीकॉम कंपनी में जॉब करता है। एक दिन श्रद्धा मनु की कंपनी में जॉब के सिलसिले में आती है। हल्के गुलाबी टॉप और जीन्स पहने हाथ में बैग लिए जैसे ही उसने मनु के ऑफिस में भीतर कदम रखा मानो कमरे का टेम्परेचर बदल गया, हवा में मानो मकरन्द घुल गया, वर्षों तक जिस कमरे में कोई विशेष बात न लगी, वह आज श्रद्धा के कदम रखते ही मनु के जिस्म की धमनियों और शिराओं में रक्त का प्रभाव दोगुनी गति से गतिमान हो गया । हाथ में लिए बैग को टेबल पर रखा औऱ कुर्सी पर बैठते ही उसने बड़ी विनम्रता से अभिवादन किया । मनु की नजर उसके गुलाबी होठों पर ऐसे टिकने लगी जैसे कम्पास की सुई दसों दिशाओं का मुआइना करती हुई उत्तर में ठहर जाती है । उसने मनु की ओर देखा औऱ एक माधुर्य मुस्कान के साथ और अपने बंधे बालों को खोल कर लहरा दिया । फैली हुईं उसकी अलकेँ मनु के हृदय के वीणा के तारों को झंकृत करने लगे, मनु के हृदय में सोए हुए संगीत का मधुर राग बज उठा ।
श्रद्धा की आंखों की चमक और मधुराधर पर माधुर्य मुस्कान मनु को ऐसी ही लग रही थी जैसे शुक्र ग्रह की दीप्तता । कुछ देर बाद वह मनु के नजदीक जाकर बैठ गयी और लगभग तीन घण्टे के दौरान अनेक विषयों पर दोनों के बीच बातें हुईं । शायद वह दिन एक दूसरे को समझने का परमात्मा का दिया गया प्रायोजित समय था, जिसे न वह समझ पाई और न मनु । यह मुलाकात इतनी गर्म थी कि गर्मी और समय दोनों ही लज्जित होकर वहां से पलायन कर गए ।
कुछ दिन बाद मनु और श्रद्धा को दूसरी कंपनी में इंटरव्यू देने जाना था, श्रद्धा, मनु के साथ गयी । यात्रा बाइक की थी तो दोनों बात करते-करते कब गन्तव्य पर पहुंच गए, पता ही न लगा । उसका बाइक पर बैठना मनु के लिए आंतरिक प्रसन्नता से भर देने वाला था । मनु को न जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि जीवन की खोई हुई वर्षों पुरानी कीमती चीज मिल गई हो । लौटकर दोनों एक मंदिर मे गए । मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा और उसके साथ की नजदीकियां मनु के रक्त के प्रभाव को ऐसे तीब्र कर रही थी जैसे किसी नदी में पानी का बहाव तेज हो जाता है । लौटकर मनु ने उसे उसके घर छोड़ दिया, लेकिन कब वह मनु के हृदय की देहली पर खड़ी ही गयी, उसे नहीं पता लगा । नहीं पता कि आखिर उसमें ऐसा क्या है जो मनु को अलग ही दुनिया मे ले जा रही थी । यूं तो देखने में बहुत सुंदर न थी लेकिन मनु को वह दुनिया की सबसे खुबसूरत लड़की दिखती थी । सौंदर्य की कोई निश्चित परिभाषा अब तक इसलिए नहीं गढ़ी गयी क्योंकि सभी की दृष्टि में सौंदर्य की परिभाषाएं उनके हृदय के भाव से तय होती हैं । मनु जब भी किसी को देखता उसे वही श्रद्धा नजर आती । घर, मंदिर, कलेंडर में किसी देवी के फ़ोटो में वही दिखती । ऐसा लगता मानो वह अभी कुछ कहने वाली हो । उसके शब्द और वाक्य विन्यास, व्याकरण से परे थे । मनु के मन मस्तिष्क और शरीर की रग- रग में उसकी मुस्कान ऐसे घुल गयी जैसे पानी में शहद घुल जाता है ।
कुछ दिन बाद श्रद्धा को अपने एक निजी कार्य से बाहर जाना था । मनु को पूछती है, आप मेरे साथ चल सकोगे ? उसका यह शब्द मनु लिए किसी देव वाणी जैसा था । उसे लगा कि इस ब्रह्मांड की किसी परी ने मुझे आमंत्रण दिया है । मनु ने उसे हाँ कह दिया । अगले दिन दोनों साथ यात्रा पर थे । बाइक पर उसका बैठना, इतनी नजदीकी इस आंतरिक और सांस्कृतिक भाव में मनु का रोम- रोम पुलकित हो रहा था । साइड ग्लास में मनु उसके मुख को ऐसे देखता रहा जैसे चकोर; चन्द्रमा को निहारता रहता है । श्रद्धा को देखता रहा लेकिन मनु की बाइक कहीं भी अनबैलेंस नहीं हुई । रास्ते में एक मंदिर के दर्शन किये और फिर मनु को लगा कि मेरे साथ श्रद्धा अचानक नहीं आई है, इसे मेरे लिए ही किसी देव ने भेजा है ।
मनु को अचानक ऐसा लगा कि मेरा शरीर भीतर से जल रहा है, जिस्म में कोई अग्नि प्रज्ज्वलित हो रही है । मनु ने किसी बात का सहारा लेकर अपने एक हाथ से उसका एक हाथ थाम लिया, वह स्पर्श मनु के लिए ऐसा था मानो जिस्म में किसी अमृत की ड्रिप चढ़ रही हो । बस अब इस शीतलता को पाने के लिए मनु ने उसे दो बार और कहा । उसने निर्विरोध मनु की हथेली को थाम लिया और मनु बाइक ड्राइव करता रहा । उस पूरे दिन मनु भावनात्मक रूप से उसके साथ रहा । साथ में खाना पीना किसी दिव्य अनुभूति जैसा था ।
लौटते में मनु ने उसे पुनः अपना हाथ सौप दिया, श्रद्धा ने मनु का हाथ थाम तो लिया लेकिन वह समझते हुए भी अनजान बन रही थी कि ये है क्या । मनु अब अपने आप पर से नियंत्रण खो चुका था । आखिर मनु ने कह दिया श्रध्दा तुम मेरी एक -एक सेल्स में समा गयी हो । उस समय उसके चेहरे के भाव असमान्य रूप से बदल गए , उसका मुख उगते हुए सूरज सा अरुणवर्णी हो गया । क्या हुआ है उसे खुद नहीं पता । आठों याम अब उसकी छवि मनु की आंखों में तैरती रहती है । स्वप्न में भी उसका आना उसके लिए अब सामान्य स्थिति से बाहर हो रहा था ।
पांच दिन बाद श्रद्धा ने मनु से मुलाकात की । मानो बर्षो से सूखे हुए तालाब की माटी को बादल दिख गए हों । मनु उसको छुए बिना नही रह सका । मनु ने उसे अपने वक्ष से लगा लिया, धूप में आई थी, गर्मी के कारण वह पसीने में नहाई थी, लेकिन उसका स्पर्श मनु के लिए किसी चंदन सा स्पर्श था, मनु ऐसे लिपट गया जैसे सर्प चंदन की टहनी से शीतलता पाने लिपट जाता है । मनु उस चंदन सी महक से मदहोश होने लगा । पल भर का आलिंगन मनु के लिए ठीक वैसा ही था जैसे पारस ने जंग लगे लोहे को छूकर सोना कर दिया हो ।
मनु अब श्रद्धा को बेहद प्रेम करने लगा था । श्रद्धा उसके खयालों से अब निकलती नहीं । प्रभात के जागरण से शयन औऱ स्वप्न तक श्रद्धा उसकी शहचरी बन गयी । लेकिन श्रद्धा के लिए मनु बहुत मायने नहीं रखता । श्रद्धा का जीवन भगवती चरण वर्मा की चित्रलेखा जैसा उन्मुक्त था । वह बीजगुप्त जैसे इंसान के साथ विलासिता के रंगमहल में झूमना चाहती थी, जबकि मनु अपने हृदय के मानसरोवर में उसे कमलिनी की भाँति खिलता हुआ देखना चाहता था । मनु का गहन और एकनिष्ठ प्रेम श्रद्धा को जोडने का प्रयास तो करता है, लेकिन उसके हृदय में उतर नहीं पाया या यह कहें श्रद्धा उसे उतारना नहीं चाहती । मनु जानता है कि श्रद्धा मेरे प्रेम को बहुत महत्व नहीं देती, लेकिन मनु के जीवन में श्रद्धा का आगमन देवीय कृपा है । लेकिन श्रद्धा के लिए मनु वही महत्व रखता है जिसे श्रद्धा ने दुनिया देखने पर उसे अन्य लोग मिले ।
— शशिवल्लभ