कविता
सोचता हूँ मैं
काश!बोल पाता
मैं साक्षी हूँ हर पल का
देखा सिर से तन जुदा होते
नाबालिग को पेड़ पर लटके
पुरखों की जमीन से बेदखल होते
मासूम बेटियों को जलते देखे
धर्म के नाम पर क्रूरता करते
मैं ही सच्चा गवाह हूँ
मौन हूँ पर कायर नहीं हूँ
विवश हूँ क्योंकि मैं रास्ता हूँ
केवल उद्वेलित होता हूँ
तार-तार होता हूँ
मैं रास्ता हूँ …….
— अनीता पंडा ‘अन्वी’