गीत/नवगीत

दोहा गीत

अपनी सजनी से हुए, मिलने को मजबूर ।
कहो पिया मैं क्या करूँ , तुम हो इतने दूर ।।
नथिया टीका बालियाँ, कंगन करधन हार ।
पायल बिछुआ आलता , हो गई मैं तैयार  ।।
लाली अपने होठ पर , मेंहदी रच ली हाथ ।
और पिया के नाम की ,चुनर ओढी माथ ।।
रुप सजाके देख मैंं , बनी हुई हूँ हूर ।
कहो पिया मैं क्या करूँ, तुम हो इतने दूर ।।
करूँ प्रतीक्षा मैं यहाँ, भूले तुम उस पार ।
धूमिल होता रुप ये , ढ़लता साज शृगांर ।।
करे निहोरा आपसे, मेरे व्याकुल नैन ।
देखे बिन साजन हमें , आता कब है चैन ।।
ऊपर से मौसम यहाँ , जुल्म करे भरपूर ।
कहो पिया मैं क्या करूँ , तुम हो इतने दूर ।।
अबकी सावन ढ़ल गया, प्रियतम ये लो जान।
आऊँगी मैं फिर नहीं, लाख पकड़ लो कान ।।
जाके तुम परदेश में , भूले मेरा प्यार ।
ये मनमानी आपकी , नही मुझको स्वीकार ।।
अपने मन की ही करो, रहो नशे में चूर ।
कहो पिया मैं क्या करुँ, तुम हो इतने दूर ।।
— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)