गीतिका/ग़ज़ल

दिलरुबा…

ये कौन आ गई दिलरूबा महकी महकी ।
फिज़ा महकी महकी हवा महकी महकी ।।

वो आंखों में काजल वो बालो में गजरा,
हथेली पे उसके जो हिना महकी महकी ।

खुदा जाने किस किस की ये जान लेगी,
वो क़ातिल अदा वो कज़ा महकी महकी ।

लाज की हल्की लालिमा चेहरे पे छुपाए हुए,
पलके झुकी हुई नूर ए शमा महकी महकी ।

सवेरे सवेरे वो जो मेरे घर पर आ गई,
ऐ हसरत वो बाद-ए-सबा महकी महकी ।

ये कौन आ गई दिलरुबा महकी महकी ।
फिज़ा महकी महकी हवा महकी महकी ।।

— मनोज शाह ‘मानस’

मनोज शाह 'मानस'

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