ग़ज़ल
आज भेद कोई न खुलने दो यारो
किसी भी तरह दिल न जलने दो यारो
चले दूर मंज़िल अभी तो पानी ही
न रोको मुझे प्यार पलने दो यारो
बड़ी ख़ुशबू आ रही है फूलों से
न तोड़ो इन्हें अब महकने दो यारो
नशा मौसमी तो अभी कुछ ऐसा है
कदम दर कदम तो बहकने दो यारो
बहुत ठंड देखो बचो अब तुम सब ही
न मफ़लर अभी तो उतरने दो यारो
अभी राज़ छुपते दिलों मे सबके ही
अभी ढील कोई न मिलने दो यारो
ज़रा रू ब रू हो सकें हम तो सुन लो
कहें ये हमें आज सजने दो यारो
कभी आँधियों से नहीं हम तो डरते
न रोको हदों से गुजरने दो यारो
लिए लालिमा शाम चलती नूरानी
इसे प्यार से देख ढलने दो यारो
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’