सामाजिक

एक मज़हब सिखाता है आपस में बैर रखना

शायर डॉ. अल्लामा इक़बाल ने अपने प्रसिद्ध क़ौमी तराना “सारे जहां से अच्छा…” में दो पंक्तियाँ इस प्रकार लिखी हैं-
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा
वाह ! कितनी उच्च कोटि की भावना है कि कोई मज़हब यानी धर्म दुश्मनी और नफ़रत (घृणा) करने की शिक्षा नहीं देता।
लेकिन ठहरिये। ये पंक्तियाँ सरासर झूठ और ग़लत हैं, क्योंकि कम से कम एक मज़हब ऐसा है जो दूसरों के साथ दुश्मनी करने और उनको काटने-मारने का उपदेश देता है। वह मज़हब है डॉ. इक़बाल का अपना मज़हब यानी इस्लाम।
इस्लाम की सबसे अधिक महत्वपूर्ण मज़हबी किताब “क़ुरान” में एक-दो नहीं, बल्कि कम से कम चौबीस आयतें ऐसी हैं, जो मुसलमानों को काफिरों अर्थात् दूसरे मज़हबों को मानने वालों के साथ खुली दुश्मनी करने और उनको जहाँ भी पायें वहीं सता-सताकर मारने का उपदेश ही नहीं बल्कि आदेश देती हैं। ऐसा करना मुसलमानों का मज़हबी फ़र्ज़ (यानी धार्मिक कर्तव्य) बताया गया है।
यहाँ ऐसी कुछ आयतें संदर्भ सहित दे रहा हूँ-
1. “फिर, जब हुरमत (रमजान ) के महीने बीत जाऐं, तो मुश्रिकों को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे ‘तौबा’ कर लें ‘नमाज’ कायम करें और, जकात दें, तो उनका मार्ग छोड़ दो।” (पा० १०, सूरा. ९, आयत ५,२ख पृ. ३६८)
2. “हे ईमान लाने वालो (मुसलमानो) उन ‘काफिरों’ से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सख़्ती पायें।” (११.९.१२३ पृ. ३९१)
3. “नि:संदेह ‘काफ़िर’ तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।” (सूरा 4 , आयत-101)
ऐसी ही और भी दर्जनों आयतें हैं जो इनसे मिलती-जुलती शिक्षा देती हैं।
यदि डॉ. इक़बाल ने अपनी मज़हबी पुस्तक क़ुरान पढ़ी होती, तो कभी ऐसी झूठी बात न लिखते। यदि यह माना जाये कि डॉ. इक़बाल ने क़ुरान पढ़ी थी, तो इसका मतलब यह हुआ कि उन्होंने जानबूझकर लोगों को भ्रम में डालने के लिए यह झूठ बोला था। यह कहीं अधिक बड़ा अपराध है।
अब समय आ गया है कि डॉ. इक़बाल ने अनजाने में या जानबूझकर जो गलती की थी उसे सुधार लिया जाये, और सबको स्पष्ट रूप से यह बताया जाये कि “एक मज़हब सिखाता है आपस में बैर रखना” और लोगों को उस मज़हब तथा उसको माननेवालों से सावधान रहने को कहा जाये।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com