कविता

हम बेवकूफ हैं क्या?

आइए विकास की नई तस्वीर बनाएं
धरा को वनों के सवाल से मुक्त कराएं।
हमें जीवन से मोह करके क्या मिलेगा
वैसे भी जब एक दिन मरना ही होगा।
क्या फर्क पड़ता है बाढ़ सूखा, भूकंप से
या भूस्खलन से होने वाले विनाश से
परणति तो सिर्फ मौत काआगोश ही है।
तब बीमारियों से हम खौफ क्यों खायें?
हम तो सुविधा भोगी बन चुके हैं यार
प्रकृति पर निर्भरता कितना कम कर चुके हैं
अब तो हम ही स्वयं खुदा हो चुके हैं
अब वनों पर हम भला निर्भर कहां हैं?
कूड़े करकट के ढेर से ज्यादा वन नहीं हैं
कृत्रिम हरियालीभरा वन हम ले आयेंगे
बेवजह वनों के चक्कर में न खुद उलझाएंगे
जीवन की आड़ में अब वन नहीं बढ़ाएंगे।
वनों पर जीवन कितना निर्भर बचा है
क्या अब भी आप हमें ये सब  बतायेंगे।
कब तक जीवन जीवन कहकर हमें डरायेंगे।
हम आधुनिक विकास के शहंशाह हैं जनाब
ये नामुराद वन भलाहमें कैसे बचा पायेंगे
जब हम खुद ही आधुनिक मौत की  तलाश में हैं
ये कब तक हमारे पहरेदार बने रह पायेंगे।
जो खुद को नहीं बचा सकते हैं यार
भला आप ही बताइए वो हमें क्या बचायेंगे?
फिर हम बेवकूफ हैं क्या जो वनों को बचाएंगे।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921