कविता

भ्रमित मन

सबसे मुलाकात करते रहे,
स्वयं से मुलाकात कर नहीं पाए,
सबकी कमजोरियां ढूंढते रहे,
स्वयं की कमियां देख न पाए,
अपनी सुख-सुविधा-स्वार्थ के समक्ष,
परमार्थ को रहे बिसराए,
भुलावे-बहकावे के जाल में फंसे,
स्वविवेक से काम ले नहीं पाए,
नकली चकाचौंध के पीछे भागते रहे,
असलियत को जान ही नहीं पाए,
वैर-क्रोध-ईर्ष्या को गले लगाते रहे,
सुख-अमन-चैन ले ही नहीं पाए,
अहम-वहम-संभ्रम की खाक छानी,
व्यर्थ झंझावात से निकल नहीं पाए,
भ्रमित मन से खुद को बहलाते रहे,
अंततः विनाश से बच ही नहीं पाए.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244