शब्द की शक्ति
प्राचीन समय में जब शब्दों का अस्तित्व उत्पन्न नहीं हुआ होगा तब कैसा लगता होगा? यह कल्पना करने पर अनुभव होता है कि उस समय जिंदगी की कार-गुजारी अत्यंत मुश्किल होती होगी। वस्तुओं की आवश्यकता के अनुसार स्वतः ही नामों का अस्तित्व पैदा हुआ होगा। आहिस्ता-आहिस्ता समय के साथ-साथ शब्दों को संवारा तथा सही स्थान दिया जाता रहा होगा। कई शताब्दियों के पश्चात् मनुष्य विकास की जड़ों से शुद्ध शब्द रूपी फल लगे होंगे तथा लगते गए।
शब्दों के अतिरिक्त इन्सान की जिंदगी अधूरी है। शब्द ही हैं जो मनुष्य को, समाज को एक दूसरे के साथ जोड़ते हैं। शब्द-शक्ति के अतिरिक्त मनुष्य की ज़िदगी सफेद काग़ज़ की तरह है। अक्षरों के अतिरिक्त मनुष्य की ज़िदगी उस मरूस्थल की भांति है जिस में कोई नदी नहीं है। शब्दों के बगैर मनुष्य की जिंदगी गूंगे की जुबान की तरह है। शब्दों के बगैर मनुष्य पशु समान है।
आध्यात्मिक लोग शब्दों की शक्ति समझने में समर्थ होते हैं। शब्द कभी मरते नहीं। इनके अर्थों का संदेश दिमाग में कीटाणुओं की तरह प्रवेश कर के असर करता है। आपने देखा होगा कि जब हमें कोई अभिवादन की मुद्रा में झुक कर सलाम करता है तो उसका संदेश इतना विनम्र तथा शांत होता है कि समस्त अत शरीर खिल सा जाता है। यह सब शब्दों की शक्ति की बदौलत ही तो है। अगर कोई मनुष्य, जो आप का दुश्मन है या विरोद्धी है, जो आप को घूर कर, माथे पर बल डाल कर देखता है तथा आपके प्रति बुरे शब्दों तथा गंदी गालियों का प्रयोग करता है तो निश्चय ही, उन गंदे शब्दों के संदेश के कीटाणुओं का असर दिमाग पर बुरा होगा दिमाग में यह संदेश प्रवेश करते ही आपका मन अत्यंत दुखी होगा तथा आप उन गंदे शब्दों के विपरीत विरोध् खड़ा कर सकते हैं। ऐसा करते हैं आप? आपने कभी ध्यान से सोचा? आध्यात्मिक पुरूष, साधु, फकीर, संतुलित दिमाग के स्वामियों पर शब्दों के संदेश इतनी जल्दी असर नहीं करते। ये शब्दों के संदेश अपनी चेतनता तथा समझ के साथ विचारते हैं। काफी समय बाद उनके असर को तोल कर फैसला लेते हैं। तेजस्वी शब्दों का असर भी पर्यायवाची क्रिया की गति-सा होता है। जिससे मनुष्य के विचारों तथा सोच में दरारें-सी आ जाती हैं। विरोधभास की अग्नि शरीर से उत्पन नहीं होती। संतुलित दिमाग के लोगों में विरोधभास की अग्नि इतनी तेज़ी से उत्पन नहीं होती। ये शब्दों की मिसाइलों को अपने संतुलन की मिसाइलों के साथ दिमाग में प्रवेश होने से पूर्व ही नष्ट ;बरबाद कर देते हैं। मिसाइलों की भांति शब्द ही दिमाग में प्रवेश करके तोड़-फोड़ तथा बरबादी पैदा करते हैं।
समस्त धर्म का अपना मंगलाचरण तथा धर्मिक प्रतीक-चिन्ह होता है। परमात्मा; रब की प्रकृति के अस्तिव का प्रतीक। जैसे एक ओंकार, ओम इत्यादि। इन शब्दों का दिमाग में प्रवेश होना ही मंगलमय होता है। बेशक कई लोगों को इन अक्षरों को सुनते ही एक शान्ति-सी शरीर में लहरा जाती है। रब, ईश्वर, अल्लाह, भगवान इत्यादि का अस्तित्व भी तो शब्दों की बदौलत ही है। शब्द न हों तो रब, ईश्वर इत्यादि के अस्तिव का सृष्टि रचनहारे के अस्तित्व का पता ही न चलता। उसको किस नाम से, कैसे संबोधित करते? यह सब शब्द की ही करामात है।
प्यार के शब्दों से अपनत्व पैदा होता है। बहुत से लोग शब्दों की शक्ति से परिचित ही नहीं। उन्हें शब्द शक्ति की समझ ही नहीं। वे तो दैनिक जिंदगी में दिन रात इतने व्यस्त हैं कि उन्होंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं। घरेलू झगड़े, युद्ध तकरार, ईर्ष्या इत्यादि शब्दों की शक्ति की बदौलत ही तो है। प्रेम, श्रद्धा, आध्यात्मिकता सब का स्त्रोत तो शब्द ही हैं। इनकी अभिव्यक्ति शब्दों से ही की जा सकती है। जो लोग शब्दों की शक्ति को समझ लेते हैं वे बहुत कम दुखी होते हैं। बुरे शब्दों को वे दिमाग में प्रविष्ट होने ही नहीं देते। जिससे उनका संतुलन बरकरार रहता है तथा वे विपरीतार्थी शब्दों के असर ग्रहण नहीं करते। अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि शब्दों की शक्ति को समझना ही जीवन है। जिसके पास यह चाबी है वह प्रत्येक तरह के दिमागी तालों को खोल सकने का सामर्थ्य रखता है।
— बलविन्दर ‘बालम’