कविता

गलतफहमी

अब तक मुझे बड़ा गुमान था सच कहूं तो बड़ा अभिमान था,और आज पहली बार गलतफहमी का शिकार होचारो खाने चित्त हो गया।मगर आपके मन में लड्डू क्यों फूट रहे हैं जनाबबड़े बेवकूफ हो जो मुझे बेवकूफ समझ रहे हो,अभी इतने समझदार नहीं हुए हो आपकि मुझे पढ़ने की कूबत है तुममें।न ही इतना बड़ा बेवकूफ हूँजो मुझे गलतफहमी हो जायेया हम किसी तरह गुमराह हो जायें।ये तो मेरी शराफत है कि मैंनेगलतफहमी के अनुरोध को स्वीकार कर गलतफहमी का शिकार हो गया,गलतफहमी को खुश होने का अवसर दे दिया,अब इतना भी नहीं समझ रहे हो कि मैंनेघर बैठे बैठे एक बड़ा पुण्य का काम कर लिया।पर तुमको अभी भी यकीन नहीं हो रहामैंने तुम्हें ही गलतफहमी का शिकार बना दिया हैतुम्हें तुम्हारे ही चक्रव्यूह मेंउलझाकर चकरघिन्नी बनाकर रख दिया है।बड़े बुद्धिमान बनते थे न तुमदेख लो तुमको ही सबसे बड़ा बेवकूफ साबित कर दिया है,गलतफहमी की आड़ में तुम्हारा शिकार कर लिया हैतुम्हें हाथ पैर वाला लूला लंगड़ा औरआंखों वाला अंधा बनाकरगलतफहमी पर एहसान भी कर दिया है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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