कविता

कौन रिश्ता कैसा रिश्ता

आजकल मेरी स्थिति बड़ी विचित्र हैआँखों में बस उसका ही चित्र है,सोते जागते उसकी सूरत अनायास ही घूम जाती है,न चाहते हुए भी वो रुला देती है।बड़ा अधिकार से अपना अधिकार जताती है,जैसे पूर्वजन्म के रिश्तों का टूटा सूत्र जोड़ना चाहती है,पर शायद बता नहीं पाती हैतभी तो इशारों में समझाती है।लेकिन मैं ठहरा बेवकूफ आदमीउसके इशारों की भाषा मुझे समझ ही नहीं आती है।अपने इशारों की अवहेलना सेवो बड़ी निराश हो जाती है।समझ नहीं आता कि कैसा रिश्ता है या थाहम दोनों के बीच जिसे वो पुनर्जीवित करना चाहती है।बड़ी असमंजस की स्थिति में हूं,कौन रिश्ता, कैसा रिश्ता था हमारा,जिसे वो इस जीवन में नवआधार देना चाहतीदूर होकर भी पास होने का अहसास कराती है,खुद तो रोती ही है, मुझे भी रुलाती हैपर अधिकार पूर्वक जैसे अपनी जिम्मेदारी निभाती है।शायद उम्मीदें न छोड़ने की कसम खाये बैठी हैतभी तो वो रोज ही आती जाती हैऔर अपने प्रयासों की सफलता की उम्मीद मेंइशारों से मुझे समझाने की नित कोशिश करती हैऔर अभी तक तो निराशा के साथ ही वापस जाती है।पर मुझे शर्मिंदा तो कर ही जाती है।क्योंकि उसके इशारों की भाषा इतने दिनों बाद भीकौन रिश्ता कैसा रिश्ता की कहानी मुझे समझ जो नहीं आती है।अब तो इस सवाल का हल मैं भी चाहता हूँक्योंकि उसकी मायूसी का कारणमैं खुद को ही मानता हूँ,और कैसे भी उसके मुखड़े परसंतोष और सूकून के भाव देखना चाहता हूँ।पर कब और कैसे? यही तो जान नहीं पाता हूँ,और अब थक हारकर आप सबका सुझावसहयोग और मार्गदर्शन चाहता हूँ,और जैसे भी हो इस घनचक्कर से मुक्त होकर आगे जीना चाहता हूँ,पर उसके अधिकार भी देना चाहता हूँ।

आजकल मेरी स्थिति बड़ी विचित्र है

आँखों में बस उसका ही चित्र है,

सोते जागते उसकी सूरत अनायास ही घूम जाती है,

न चाहते हुए भी वो रुला देती है।

बड़ा अधिकार से अपना अधिकार जताती है,

जैसे पूर्वजन्म के रिश्तों का टूटा सूत्र जोड़ना चाहती है,

पर शायद बता नहीं पाती है

तभी तो इशारों में समझाती है।

लेकिन मैं ठहरा बेवकूफ आदमी

उसके इशारों की भाषा मुझे समझ ही नहीं आती है।

अपने इशारों की अवहेलना से

वो बड़ी निराश हो जाती है।

समझ नहीं आता कि कैसा रिश्ता है या था

हम दोनों के बीच जिसे वो पुनर्जीवित करना चाहती है।

बड़ी असमंजस की स्थिति में हूं,

कौन रिश्ता, कैसा रिश्ता था हमारा,

जिसे वो इस जीवन में नवआधार देना चाहती

दूर होकर भी पास होने का अहसास कराती है,

खुद तो रोती ही है, मुझे भी रुलाती है

पर अधिकार पूर्वक जैसे अपनी जिम्मेदारी निभाती है।

शायद उम्मीदें न छोड़ने की कसम खाये बैठी है

तभी तो वो रोज ही आती जाती है

और अपने प्रयासों की सफलता की उम्मीद में

इशारों से मुझे समझाने की नित कोशिश करती है

और अभी तक तो निराशा के साथ ही वापस जाती है।

पर मुझे शर्मिंदा तो कर ही जाती है।

क्योंकि उसके इशारों की भाषा इतने दिनों बाद भी

कौन रिश्ता कैसा रिश्ता की कहानी 

मुझे समझ जो नहीं आती है।

अब तो इस सवाल का हल मैं भी चाहता हूँ

क्योंकि उसकी मायूसी का कारण

मैं खुद को ही मानता हूँ,

और कैसे भी उसके मुखड़े पर

संतोष और सूकून के भाव देखना चाहता हूँ।

पर कब और कैसे? यही तो जान नहीं पाता हूँ,

और अब थक हारकर आप सबका सुझाव

सहयोग और मार्गदर्शन चाहता हूँ,

और जैसे भी हो इस घनचक्कर से 

मुक्त होकर आगे जीना चाहता हूँ,

पर उसके अधिकार भी देना चाहता हूँ। 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921