हास्य व्यंग्य

मैं यानि आदिमानव (व्यंग्य)

ऐसा लग रहा है कि पिछड़ने का यही सिलसिला रहा तो भारतवासी स्वयं को आदिमानव भी घोषित कर देंगे। बड़ा विचित्र पिछड़ापन है भाई! मेरे पास कार है, डेढ़ – दो लाख रुपया प्रति माह वेतन पानेवाले घर में चार सदस्य हैं। महानगर में रहता हूँ तो डुप्लेक्स मेरा आवास है और तीन फ्लैटों से लगभग तीस हजार किराये की आमदनी भी होती है। पुश्तैनी गाँव में चार-पाँच एकड़ ज़मीन भी है।शैक्षणिक स्तर पर डॉक्टरेट की पदवी है। मेरा बेटा इंजीनियरिंग कॉलेज में और बेटी मेडीकल कॉलेज में उच्च शिक्षा ले रही है, यह बात और है कि चयन परीक्षा की सूची में उनका नाम किसी अगड़े की तुलना में काफी नीचे था पर बाबा की कृपा जिस पर हो उसका कौन बाल बाँका कर सकता है। पर अफसोस कि मैं पिछड़ा हूँ।मेरा मानसिक विकास अब तक न हो पाया। भगवान ने मुझे पिछड़ों के घर जो पैदा किया। अब मेरे वंशज युगों -युगों तक पिछड़े ही पैदा होंगे। किसके बाप में दम है कि मुझे अगड़ा कर दे। अब मैं और पिछड़ना चाहूँगा केले के पत्ते और पेड़ों की छाल लपेट कर हवाई यात्रा करूँगा। पिछड़ों का शिरोमणि कहलाऊँगा। मैं दुनिया के प्रथम पुरूष का वंशज हूँ। मुझे अपने को पिछड़ा कहने में कोई लाज शर्म नहीं। लेकिन तुम मुझे यदि पिछड़ा कहोगे तो ज़बान खींच लूँगा।सूली पर चढ़वा दूँगा। भई ! देश में लोकतंत्र और संविधान भी भला कोई चीज़ है या नहीं? मैं स्वयं को ऐनकेन प्रकारेण पिछड़ा प्रमाणित कर सारे लाभ लेने का संवैधानिक पात्र हूँ। लेकिन आपकी क्या मजाल कि मुझे पिछड़ा कहो जनाब?
देश में पिछड़ेपन की घुड़दौड़ लगी हुई है। जिसमें सारे गधे भाग रहे हैं। ये अजीब विकास है।! सुनो कबीर बाबा क्या गुनगुना रहे हैं-
“पिछड़ेपन की लूट है, लूट सके तो लूट।
अंतकाल पछताएगा, जब प्राण जायेंगे छूट।।
देश ने आजादी के अमृतकाल में विश्वगुरु होने का दावा ठोक दिया है। अर्थव्यवस्था उत्तरोत्तर प्रगति कर रही है किंतु देशवासी पिछड़ने पर आमादा है। एक ओर चंद्रयान ने चाँद के चरण चूम लिए और दूसरी ओर पिछड़ों की जमात में एक नाम और जुड़ गया। वाह ! क्या विकास है!!
लगता है सब आदिमानव बनकर ही मानेंगे। हे भगवान ! मुझे हर युग, हर जन्म में आदिमानव बनाकर ही भारतभूमि में पैदा करना।

— शरद सुनेरी