कविता

कलयुगी श्रवण कुमार

श्रवण कुमार हम बहुत शर्मिंदे है
कलयुग में कुछ औलादों के विचार बहुत गंदे हैं,
जिस औलाद को मां बाप ने पाल पोषकर बनाया लायक
वो औलाद बाद में निकल गया नालायक।
परिश्रम और त्याग कर माँ बाप ने
बड़े अरमानों से औलाद को पाला,
वही औलाद बड़े होकर माँ बाप को घर से निकाल
लगा दिया दरवाजे पे ताला।
ऐसे हुए आजकल के औलादें
पैसों के लिए छोड़ दिया माँ- बाप और देश,
माँ बाप पहुँचा कर बृद्धाश्रम
खुद बीबी बच्चों के संग रह रहे हैं विदेश।
खोखले जिंदगी जी रहे हैं और
विदेश में कर रहे हैं धनोपार्जन,
बुढ़े माँ बाप घुंट घुंट कर मर जाते हैं यहाँ,
न करते हैं उनका श्राद्ध और न अस्थी विसर्जन।
पर आज भी मौजूद हैं कई ऐसे श्रवण कुमार,
जो माँ बाप को करते हैं जी जान से प्यार।
ऐसे ही श्रवण कुमार से जीवित है
धरती पे सभ्यता, संस्कृति और संस्कार,
ऐसे औलाद ही ईश्वर से पाते हैं
आशिर्वाद के रूप में पुरस्कार।

— मृदुल शरण