पुस्तक समीक्षा

प्रकृति के आँगन में है सौंदर्य, दर्द एवं दवा का दिव्य समन्वय – दुर्गेश्वर राय

प्रकृति में करोड़ों जीव–जंतु, पेड़–पौधे मौजूद हैं, जिन्हें प्रकृति पूरी शिद्दत से पुष्पित–पल्लवित करती रहती है। एक साथ सभी जीव–जंतुओं के भोजन, आवास और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। प्रकृति ने एक ऐसा सुदृढ़ पारस्परिक सामंजस्य विकसित कर दिया है जिससे सभी जीव एक दूसरे के सहयोग और समन्वय से अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। सूरज, चांद, सितारे, बादल, वर्षा, हवा, फूल, फल, पेड़, पौधे, पशु, पक्षी, मनुष्य सबके समन्वय से निर्मित एक अप्रतिम, सुंदर, सुरम्य, सुमधुर सौंदर्य बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है। मनुष्य ने जबसे अपनी भौतिक आवश्यकताओं को प्राथमिकता देना शुरू किया है तबसे यह सामंजस्य बिगड़ने लगा है।   मनुष्य विकास के नाम पर प्रकृति के व्यस्थाओं को भंग करने का प्रयास करता रहता है। हालांकि प्रकृति भूकंप, बाढ़, तूफान, सुनामी, कोरोना आदिक आपदाओं के माध्यम से मनुष्य को सुधरने की चेतावनी देती रहती है, पर मनुष्य कहां सुनने वाला। ऐसे में प्रकृति कभी लाचार होकर लालची मनुष्यों द्वारा अपने विनाश की लीला देखती रहती है तो कभी आवेशित होकर दण्ड का रास्ता अपनाती है। प्रकृति के इसी सौंदर्य, सामंजस्य, स्नेह, विशिष्टता, दण्ड, लाचारी, आवश्यकता आदि विविध पक्षों को बड़ी सहजता के साथ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रही है वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षक प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ द्वारा संपादित और रुद्रादित्य प्रकाशन द्वारा मुद्रित पुस्तक “प्रकृति के आँगन में”। पुस्तक दो भागों में विभाजित है। पहले भाग ‘विचार हरीतिमा’ में 21 रचनाकारों के लेख और दूसरे भाग ‘काव्य हरीतिमा’ में 83 रचनाकारों की कविताएं शामिल हैं।

        पहले भाग में आलोक यादव ने संस्मरण, अनिल राजभर ने यात्रा वृत्तांत, कुमुद और माधुरी जायसवाल ने कहानी के माध्यम से प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन किया है। अर्चना वर्मा और दीक्षा मिश्रा ने नीम जैसे गुणी पेड़ के दर्द को उकेरा है तो डॉ. रचना सिंह, बुशरा सिद्दीकी और राजबहादुर यादव ने प्रकृति की समस्याओं और इच्छाओं को व्यक्त किया है। आसिया फारूकी ने कोरोना जैसे महामारी को प्रकृति का दण्ड माना है। रीना सिंह और डॉ. प्रज्ञा त्रिवेदी ने मानव और प्रकृति के अंतर्संबंधों को रेखांकित किया है तो डॉ. श्रवण कुमार गुप्त, रणविजय निषाद, प्रतिभा यादव, अमिता शुक्ला और आभा त्रिपाठी ने वृक्षारोपण, जल संरक्षण, संसाधनों के संरक्षण सहित प्रकृति और पर्यावरण को बचाने के विभिन्न उपाय सुझाए हैं। कमलेश कुमार पाण्डेय, हरियाली श्रीवास्तव और वर्षा श्रीवास्तव ने अपने एकल प्रयास से जहां मिशाल कायम की है वहीं डॉ. पूजा यादव ने बोनसाई तकनीकी की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।

     दूसरा भाग काव्य विधा की रचनाओं से परिपूर्ण है। कुछ कविताएं छंद विधान पर आधारित हैं तो कुछ छंदमुक्त किंतु भाव की प्रधानता सभी कविताओं में देखी जा सकती है। आकांक्षा चौधरी, अभिलाषा गुप्ता, अभिषेक कुमार, दीपा रानी गुप्ता, मीना भाटिया, मोनिका सिंह, नीलम दीक्षित, डॉ. प्रवीणा दीक्षित, रचना रानी शर्मा, रश्मि पाण्डेय, रवींद्रनाथ यादव, शीलचंद्र जैन शील और डॉ. सुमन गुप्ता द्वारा प्रकृति के सौंदर्य को इस प्रकार वर्णित किया गया है की पाठक इन्हें पढ़ते–पढ़ते प्रकृति के रंग में सराबोर होकर उसकी दिव्यता का अनुभव करने लगेंगे। प्रकृति के विभिन्न घटकों के सौंदर्य, भूमिका, समस्याओं और निदान को कई कविताओं में स्वर दिया गया है। आरती साहू, अंजना द्विवेदी ‘काव्या’ और सीमा मिश्रा ने पूरी सृष्टि को ऊर्जित कर रहे दीप्तिमान सूर्य का वर्णन किया है। अपर्णा नायक, अरविंद कुमार सिंह, कौसर जहां, प्रियदर्शिनी तिवारी, पूजा सचान, राजीव कुमार गुर्जर, शीतल सैनी, श्रेया द्विवेदी ने जहां वर्षा और जल के महत्व और संरक्षण की आवश्यकता को उकेरा है वहीं दीप्ति खुराना, मनमोहन सिंह, वंदना गुप्ता और प्रमोद दीक्षित मलय ने नदियों के अविरल धारा को सतत प्रवाहित होने देने की आवश्यकता को अपनी कविता के माध्यम से समझाया है। भावना शर्मा और स्मृति दीक्षित ने हवा को स्वच्छ रखने की बात कही है तो पूजा पाण्डेय ने ओजोन परत के क्षरण से होने वाले खतरे से आगाह किया है। दीपिका गर्ग ने धरती, दीप्ति सक्सेना ‘दीप’ ने चांद और दुर्गेश्वर राय ने पुष्प की अभिलाषा को महसूस किया है। ज्योति विश्वकर्मा, ओमकार पाण्डेय और शालिनी गुप्ता की कविताएं गुम होती जा रही गौरैया की याद दिला रही है तो ममता खन्ना और शैला राघव की कविता विभिन्न पौधों के औषधीय गुणों को बता रही हैं। सच में हम मनुष्यों को कितना कुछ देती है प्रकृति। हर दर्द की दवा इस प्रकृति में उपलब्ध है। विधु सिंह, दीपिका वर्मा, कंचन बाला और राजेंद्र प्रसाद राव ने अपनी कविताओं में यूं ही प्रकृति को सृजनकर्ता नहीं कहा है। कुसुम मिश्र, डॉ. प्रीति चौधरी, रीता गुप्ता, शशि कौशिक, सीमा कुमारी, सुमन, सुनीता गुप्ता, सुषमा मलिक, विजय मेहंदी और विवेक पाठक ने अपनी कविता के माध्यम से पेड़ों की आवश्यकता, महत्व, व्यथा आदि को  जीवंत किया है तो अमिता सचान, अनीता मिश्रा और अनुराधा दोहरे ने अभियान चलाकर वृक्षारोपण की वकालत की है। 

      आशा देवी कुशवाहा और अनुरंजना सिंह जहां प्रकृति के अति दोहन से चिंतित नजर आ रही हैं वहीं गीता भाटी, गीता यादव, इन्दु गुर्जर, नम्रता श्रीवास्तव, डॉ. नीतू शर्मा, प्रतिमा उमराव और पूजा यादव ने मानव द्वारा प्रकृति पर किए जा रहे अत्याचारों और प्रकृति के दर्द की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया है। पूजा चतुर्वेदी, रीता गुप्ता और शहनाज बानो की कविता जहां प्रकृति के कठोरतम दण्ड की चेतावनी दे रही हैं तो पूजा दूबे, ऋतु श्रीवास्तव, रीना सैनी, रीनू पाल रूह, शिवाली जायसवाल, शीला सिंह और श्रुति त्रिपाठी ने प्रकृति और इसके विभिन्न घटकों के संरक्षण के विविध उपाय सुझाया है। निधि माहेश्वरी की हास्य कविता गायब आपके चेहरे पर मुस्कान ला देगी।

    पुस्तक का नाम ‘प्रकृति के आँगन में’ पढ़ते ही पुस्तक के विषय वस्तु के बारे में जिज्ञासा उत्पन्न होने लगती है। अरुण कुमार यादव ‘प्रयास’, गरिमा वार्ष्णेय, हीना नाज, माधुरी त्रिपाठी, मनीषदेव, निशि श्रीवास्तव और शोभना शर्मा की कविताएं प्रकृति के आँगन के विभिन्न पक्षों को रेखांकित करती हैं। प्रमोद दीक्षित मलय ने अपने संपादकीय लेख में कोरोना की भयावह तस्वीर और इस दौरान शैक्षिक संवाद मंच द्वारा संपादित किए गए ग्यारह सूत्रीय कार्ययोजना के साथ साहित्य के माध्यम से जनजागरण अभियान का जिक्र किया है। संपादकीय लेख पुस्तक के लिए आईना का कार्य कर रहा है। मोटे, चमकदार, पीले पृष्ठों पर रुद्रादित्य प्रकाशन प्रयागराज द्वारा छापे गए अक्षर फूल के तरह खिलते नजर आ रहे हैं। राजभगत का शानदार कवर डिजाइन मन मोह ले रहा है। सुप्रसिद्ध विज्ञान कथाकार देवेंद्र मेवाड़ी द्वारा लिखित भूमिका प्रकृति का अद्भुत नजारा प्रस्तुत कर रही है। आपके द्वारा पीपल, बरगद, आम, नीम आदि वृक्षों की ऐतिहासिकता को सुंदर तरीके से समझाया गया है। आपकी भूमिका पुस्तक को पढ़ने के लिए विवश कर देती है तो वरिष्ठ पत्रकार और व्यंगकार संतराम पाण्डेय द्वारा लिखित शुभकामना संदेश ने पुस्तक की गरिमा बढ़ा दी है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक पाठकों को एक तरफ प्राकृतिक सौंदर्य का रसास्वादन कराएगी तो दूसरी तरफ एक सजग मनुष्य के भांति प्रकृति से प्रेम और इसके संरक्षण के लिए प्रेरित करेगी।

पुस्तक का नाम – प्रकृति के आँगन में

संपादक – प्रमोद दीक्षित ‘मलय’

प्रकाशक – रुद्रादित्य प्रकाशन, प्रयागराज

पृष्ठ – 261,  मूल्य – ₹ 300/-

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - [email protected]