दोहे
ख्याल नही तेरा जिसे ,नहीं जिसे परवाह
छोड़ उसे तू सोचना,मत कर उसकी चाह
कैसे निर्धन को यहां,मिले उचित उपचार
फीस बिना खुलते नहीं,अस्पताल के द्वार
भाईचारा अब कहां, कहां प्रेम, सद्भाव
द्वेष,क्लेश हर ओर है,हैं खंजर के घाव
अस्त्र शस्त्र वो बेचते,चाहें हिंसा रोज
शान्ति लाने को चली,हथियारो की फोज
अंहकार किस बात का,होगा राख शरीर
अंत सभी का एक है,राजा रंक फकीर
जब भी खुद से बात की,था एकाकी दोर
दर्पण पूछे प्रश्न अब, ये तू है या और
मीत पुराना देखकर,बेकाबू जज्बात
हाल पूछते ही हुई,आँखो से बरसात
बदले बदले खेत हैं,सूखे सूखे पात
धरती बंजर सी दिखे, तीखी है बरसात
— शालिनी शर्मा