कविता
थक गये वजूद अपना
खोजते-खोजते
न मिली, न संभावना ही दिखा
अस्थि पंजर का एक ढाँचा
मांसपेशियों का आवरण चढ़ा
एक सुन्दर शरीर
साँस भरता हुआ
काम, क्रोध, माया
और प्रेम से ओतप्रोत
भारी पड़ा सब पर प्रेम
प्रेम ने बांधा इस कदर
कर बैठे सारे जगत से प्रेम
फिर न हो सके कभी अलग
अन्त होता दिखा जीवन का
तलाश वजूद का चलता रहा
न मिला मेरे प्रश्न का उत्तर
— डा. मंजु लता