कविता

कविता

थक गये वजूद अपना
खोजते-खोजते
न मिली, न संभावना ही दिखा
अस्थि पंजर का एक ढाँचा
मांसपेशियों का आवरण चढ़ा
एक सुन्दर शरीर
साँस भरता हुआ
काम, क्रोध, माया
और प्रेम से ओतप्रोत
भारी पड़ा सब पर प्रेम
प्रेम ने बांधा इस कदर
कर बैठे सारे जगत से प्रेम
फिर न हो सके कभी अलग
अन्त होता दिखा जीवन का
तलाश वजूद का चलता रहा
न मिला मेरे प्रश्न का उत्तर

— डा. मंजु लता

डॉ. मंजु लता Noida

मैं इलाहाबाद में रहती हूं।मेरी शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है। इतिहास, समाजशास्त्र,एवं शिक्षा शास्त्र में परास्नातक और शिक्षा शास्त्र में डाक्ट्रेट भी किया है।कुछ वर्षों तक डिग्री कालेजों में अध्यापन भी किया। साहित्य में रूचि हमेशा से रही है। प्रारम्भिक वर्षों में काशवाणी,पटना से कहानी बोला करती थी ।छिट फुट, यदा कदा मैगज़ीन में कहानी प्रकाशित होती रही। काफी समय गुजर गया।बीच में लेखन कार्य अवरूद्ध रहा।इन दिनों मैं विभिन्न सामाजिक- साहित्यिक समूहों से जुड़ी हूं। मनरभ एन.जी.ओ. इलाहाबाद की अध्यक्षा हूं। मालवीय रोड, जार्ज टाऊन प्रयागराज आजकल नोयडा में रहती हैं।