लघुकथा – हिम्मत
अपनी हिम्मत के लिए सरकार द्वारा पुरस्कृत होने की खबर से सिल्वी रोमांचित थी. हिम्मत से काम लेकर सिल्वी सबकी सिरमौर बन गई थी, पर हिम्मत के लिए उसने अपने को कैसे तैयार किया था, वह क्या भुलाया जा सकता है!
“सिल्वी की हिम्मत की दाद देते हुए इसको बाइज्जत बरी किया जाता है. पूरे गांव के लोगों ने अपनी गवाही में लाला के जुल्मों का किस्सा बयां किया है.” सरपंच जी ने पंचायत का फैसला सुनाते हुए कहा था.
सिल्वी एक खाली बोतल उठाकर पानी की आस में लाला की दुकान पर गई थी. शायद उसको दया आ जाए! सूखे के कारण पानी की एक बूंद के लिए और कोई चारा भी तो नहीं था!”
“दुकान के पीछे आजा. बड़ी बोतल यहां से नहीं आ पाएगी.” लाला ने उसकी मजबूरी समझकर कहा था.
उसकी मीठी-मीठी बातों से अपनी आबरू पर बात आते देखकर उसने उसी की दुकान का बट्टा उठाकर उसके सिर पर दे मारा था, फिर सीधे सरपंच जी के पास चल पड़ी थी.
“कैसे आना हुआ बिटिया? सरपंच जी ने पूछा था. उसने बट्टे से लालाजी को मारने की बात बताकर अपना जुर्म कबूल कर लिया था.
कारण पूछने पर उसने कहा बचपन में आपकी ही पंचायत में सुना था- “स्त्री की आबरू बचाना स्त्री का धर्म भी है और कानून का भी. अपनी आबरू बचाने के लिए मुझे बट्टे का सहारा लेना पड़ा.” सरपंच जी ने तुरंत उसका और उसकी मां की सुरक्षा का प्रबंध कर दिया था.
“आपकी हिम्मत के लिए आपको सरकार द्वारा पुरस्कृत किया जाएगा.” सरपंच जी के एक हरकारे ने उसकी तंद्रा भंग करते हुए कहा था.
हिम्मत ने हिम्मत को सराहा था.
— लीला तिवानी