कहानी

कहानी – पहाड़िया

यूं तो मैं पहाड़ से था। हिमाचल के चंबा से । परंतु रोजगार के सिलसिले में रहता पठानकोट था। क्योंकि यहां टैक्सी चलाता था ।

रेलवे स्टेशन के पास ही लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर मेरा किराए का घर था।

 यूं तो मैंने एम ए कर रखी थी लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। सरकारी नौकरी के चक्कर में पांच साल बर्बाद करने के बाद मैंने टैक्सी  ड्राइविंग शुरू कर दी ।

 सुबह सात बजे जम्मू तवी एक्सप्रेस चक्की बैंक पहुंचती थी। मैं रोज सुबह अपनी टैक्सी लेकर रेलवे स्टेशन के पीछे टैक्सी स्टैंड पर पहुंच जाता था।

 ताकि कोई सवारी मिल जाए । कभी सवारी मिल भी जाती थी और कभी खाली वापस आना पड़ जाता था ।

परंतु यह मेरा डेली रूटीन वर्क था ।

सुबह जल्दी उठकर तैयार होकर अपनी टैक्सी लेकर रेलवे स्टेशन पर पहुंच जाना।  आठ बजे ट्रेन स्टेशन पर लगी तो मैं सवारी की तलाश में पूछता हुआ स्टेशन पर घूमने लगा ।

तभी मैंने एक कपल से टैक्सी के लिए पूछा -“टैक्सी टैक्सी”।

तो बोले -“हां टैक्सी तो चाहिए परंतु हम डलहौजी जा रहे हैं।

 हमें टैक्सी दो-तीन दिनों के लिए चाहिए क्या आप हमारे साथ चल सकते हैं ।”

अंधा क्या चाहे दो आंखें । मुझे तीन दिन के लिए काम मिल रहा था ।

निर्धारित किराए पर अच्छी सर्विस का वायदा  लेकर उन्होंने मेरी टैक्सी हायर कर ली।

उनका सामान डिक्की में रखा और उन्हें गाड़ी में बैठाकर हम डलहौजी के लिए निकल पड़े।

शहर से निकलकर हम जैसे ही डलहौजी रोड पर चक्की क्रॉस करके आगे बढ़े तो बगल में शराब का ठेका देखकर लड़के ने कहा-” गाड़ी रोको एक मिनट।” फिर वह एकदम नीचे उतरकर ठेके की तरफ बढ़ गया। वहां से एक बोतल शराब लेकर फिर गाड़ी में बैठ गया । अब वह पीछे वाली सीट में जाकर बैठ गया और मुझे कहा-” मैडम को अगली सीट पर बैठा दो।”

वह लड़की अगली सीट पर आ गई।

बैग से गिलास व चिप्स निकालकर उसने जल्दी-जल्दी एक पेग बनाकर  पी लिया।

पठानकोट से डलहौजी लगभग अस्सी किलोमीटर है। बीस-पच्चीस किलोमीटर का सफर करने के बाद छोटी-छोटी पहाड़ियां शुरू हो जाती हैं।

प्रकृति के मनमोहक दृश्य बरबस अपनी ओर आकर्षित करने लगते हैं ।

वह लड़का तो दो-तीन पैग लगाकर सो गया था और

मैं धीरे-धीरे गाड़ी चला रहा था। बगल में बैठी  मैडम को उन जगहों के बारे में बता रहा था जिनके बारे में थोड़ा बहुत मैं जानता था । 

वह अनमनी सी मेरी बातों के जवाब में हूं हूं कर रही थी जैसे उसे उन खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों में कोई भी दिलचस्पी न हो।

आज शाम को उन्हें खज्जियार में रुकना था।

हमने दो घंटे का सफर कर लिया था। नैनीखड्ड पहुंच गए थे।वहां मैंने गाड़ी रोकी।

 सुबह के दस बज गए थे । मैंने कहा -“मैडम आप फ्रेश भी हो लो और हम ब्रेकफास्ट भी कर लेते हैं । पीछे लड़का नशे में सोया ही था ।

मैंने उसे उठाने की कोशिश की तो मैडम ने मना कर दिया। बोली -“इन्हें सोने दो जब यह खुद जाग जाएंगे तब इन्हें आगे कहीं ब्रेकफास्ट करवा देंगे।

मैंने कहा-” ठीक है मैडम “…और मैं उतर कर ढाबे में चला आया। थोड़ी देर में मैडम फ्रेश होकर आ गई। हम दोनों ने वहां ब्रेकफास्ट किया और हम चल पड़े। वह लड़का अभी भी सोया था।

खज्जियार में पहले से ही इनकी यहां होटल में बुकिंग हो गई थी। बनीखेत से खज्जियार लगभग तीस किलोमीटर दूर है। यहां तक पहुंचने के लिए दो घंटे आराम से लग जाते हैं। हमारे पास अभी पूरा दिन पड़ा था इसलिए मैंने मैडम से कहा कि आप चाहो तो डल्हौजी में घूम सकते हैं । परंतु मैडम ने मना कर दिया । क्योंकि वह लड़का अभी भी सोया था। फिर भी मैंने गांधी चौक पर जाकर थोड़ी देर के लिए गाड़ी रोक दी और मैडम को पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के कुछ दृश्य दिखाने शुरू कर दिए। यूं तो मैडम पर्वतों को देखकर उत्साहित थी। परंतु साथी के इस तरह नशे में लेटे होने की वजह से वोउदास भी थी । यह सब मैं उसकी हंसी के पीछे पढ़ सकता था।

गांधी चौक से खज्जियार की तरफ हम धीरे-धीरे बढ़ रहे थे। इसी बीच वह लड़का जाग गया था।वह भी खूबसूरत पहाड़ों की सुंदरता को निहारने लगा था ।

परंतु न कोई जोश, न उत्साह और न ही कोई साथी के साथ घूमने की खुशी।

 वह तो जैसे एक काम निपटा रहा था। मैं उसके व्यवहार से सब पढ़ सकता था…..।

मुझे यह सब समझ नहीं आ रहा था कि इतनी दूर से ये लोग घूमने आए हैं परंतु कोई खुशी नहीं कोई चाहत नहीं ।

क्या माजरा हो सकता है?…. मैं भीतर ही भीतर अंतर्द्वंद्व में घिरा खुद ही कई प्रश्न उठाता उनके हल स्वयं ही देता और फिर स्वयं ही निरुत्तर हो जाता…..।

खूबसूरत वादियों से गुजरते हुए हम दो बजे खज्जियार पहुंचे तो दोपहर उतर आई थी।

 करीने से सजे हुए ऊंचे ऊंचे देवदार, देवदारों से घिरा खूब लंबा चौड़ा चौगान और बीच में एक अद्भुत झील….। चौगान में सैकड़ो सैलानी अठखेलियां करते हुए एक अनुपम दृश्य उपस्थित कर रहे थे…।

मैंने गाड़ी पार्क की और उन्हें होटल तक पहुंचा आया।

 तभी लड़के ने एक बोतल मेरे से और मंगवा ली। शायद उसने पहली बोतल खाली कर दी थी।

उसने पैग बनाया और फिर पी लिया और मुझे कहा कि आप मैडम को थोड़ा घूमा लाओ….।

मैंने कहा -“साहब खाना खा लो लंच टाइम हो गया है। उसके बाद में आ जाऊंगा और मैडम को घुमाने ले जाऊंगा।”

 तब वह बोला-” नहीं, अभी मैं नहीं खाऊंगा ।

आप मैडम को ले जाओ और बाहर रेस्टोरेंट में खाना खिलाओ और मैडम को घूमाने ले जाओ।”

मुझे ये सब अटपटा लग रहा था….।

मैं मैडम के साथ रेस्टोरेंट में आ गया। हमने वहां खाना खाया। फिर हम चौगान में आ गये।

लड़का मेरी उम्र का था जबकि मैडम कोई पांच साल हमसे छोटी होगी।

लंबा खूबसूरत छरहरा बदन, घने लंबे बाल काली भौंहें गोरा मुखड़ा और उस पर सलीके से पहने सलवार कमीज उसे जैसे दिव्यता दे रहे थे ।

 परंतु चेहरे पर खिंची उदासी की लकीरें जैसे चांद के ऊपर छोटे-छोटे घने बादलों की टुकड़ियां ….। चांद की आभा को बाधित करतीं हुई ।

खज्जियार के चौगान में घूमते हुए हमारा परिचय बढ़ता गया। उसने मेरे बारे में पूछा तो मैंने बताया -” मैंने इंग्लिश में एम ए कर रखा है । कोशिश के बाद भी जब मुझे जॉब नहीं मिली तब मैंने इस काम को शुरू किया । घर में मेरे भाई भाभी हैं मेरे माता-पिता पहले गुजर गए हैं।”

उसने भी अपने बारे में बताया कि मैंने भी हिस्ट्री में एमए किया है । मैं प्रोफेसर बनना चाहती थी । परंतु पापा ने इनके साथ मेरी शादी कर दी ।शहर के ये बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं। मेरे साहब परिवार के इकलौते बेटे हैं , घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं है …।

बस सुकून नहीं है…..।

मैं सुकून से कुछ नहीं समझा था…. ।

मुझे लगा लड़के को शराब पीने की लत लग गई है , इसी वजह से सुकून नहीं है।

खैर हम वहां घूमते रहे। मैं मैडम की तस्वीरें उतारता रहा ।वह घर से ही एक कैमरा ले आए थे । 

धीरे-धीरे शाम उतर आई थी ।मैंने कहा -“मैडम चलो अब  रूम में चलते हैं ।”

होटल में ही उन्होंने मुझे एक अलग रूम ले दिया था।

अब हम होटल में आए तो लड़का सोकर जाग गया था। अब उसका थोड़ा नशा उतर गया था।

उसने सुबह से कुछ नहीं खाया था इसलिए मैं उसके लिए खाना रूम में ही ले आया। उसने थोड़ा सा खाना खाया परंतु उसके चेहरे पर भी उदासी के वैसे ही बादल छाए थे जैसे लड़की के चेहरे पर थे।

दो दिन तक वे खज्जियार में ही रहे। मैंने उन्हें पैराग्लाइडिंग पॉइंट , पौलानी माता टेंपल ,काला टोप,डायनकुंड जो यहां देखने वाले स्थान थे ,दिखा दिए थे और रोज शाम को हम वापस होटल में आ जाते थे।

लड़का शराब पीने में मस्त हो जाता था और मैं और मैडम चौगान में घूमने निकल जाते ….। कल सुबह उन्होंने चले जाना था, दिन की ट्रेन थी।

आज उनकी यह आखिरी रात थी खज्जियार में….।

इन दो-तीन दिनों में हम काफी घुल मिल चुके थे। ऐसे लग रहा था जैसे हम एक दूसरे को वर्षों से जानते हैं….।

धीरे-धीरे शाम उतरने लगी थी…. । हम दोनों खज्जियार के इस हरे भरे मैदान में घूम रहे थे। सैंकड़ों सैलानी जो दिन में आए थे अब अपनी गाड़ियां लेकर वापस डलहौजी या चंबा वापिस जा रहे थे । धीरे-धीरे चौगान खाली होने लगा था ।

दिन भर महकता चहकता चौगान अब नीरव रात की शांति में जैसे विलीन होने लगा था…..।

हम दोनों एक देवदार के पेड़ के नीचे हरी दूब पर बैठ गए थे…।

तभी वह बोली -“आपको एक राज की बात बताती हूं किसी से कहना मत । फिर वह बोली -“मेरे साहब का बचपन में एक्सीडेंट हुआ था; उसके बाद वे संतान उत्पत्ति के काबिल नहीं रहे हैं। इस बात को घर वाला कोई नहीं जानता , यह शादी के लिए मना कर रहे थे। परंतु घर वालों ने जबरदस्ती इनकी शादी करवा दी। इस राज को हम दोनों ही जानते हैं। शादी के बाद मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या करूं। अगर घर छोड़ कर चली जाऊं तो दोनों परिवारों की इज्जत है, शहर में यह नामी हस्ती हैं….।

 मैं इस परिवार की बहू हूं ,और मायके में मेरे पापा की भी इज्जत है…।

 मैं सोचती हूं मैं जाऊं तो जाऊं कहां….?

इसलिए यहीं रहकर मैं घुट घुट कर जी रही हूं। मुझे कोई रास्ता दिखाई नहीं देता। पांव में पड़ी हुई बेड़िया मैं तोड़ नहीं पाऊंगी ; क्योंकि मैं इतनी मजबूत नहीं हूं….।”

कहते-कहते उसकी आंखें भर आईं।

न जाने कब मैंने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया उसे सांत्वना देता रहा।

चूंकि हम दोनों जवान थे हमारे हाथों की गर्माहट हमारे दिलों तक उतर आई थी…..।

उसने मुझसे उसके साथ रहने का वायदा ले लिया…।

इन कमजोर पलों में मैंने जीवन भर उसके साथ रहने का वायदा दे दिया…।

यह सब इतनी जल्दी हो गया था जैसे भीनी भीनी खुशबू लिए हवा का एक झोंका हम दोनों को छूकर निकल गया हो।

मैंने दिमाग को एक तरफ रखकर दिल का फैसला उसके हक में दे दिया था…।

वायदे के मुताबिक मैं उनके पास कुछ दिनों बाद पहुंच गया था….।

अब मैं उनके घर में मैडम का पर्सनल ड्राइवर था।

दिन भर मुझे कोई काम नहीं होता था। जब कभी मैडम ने घूमने जाना होता या साहब को लाना या छोड़ना  होता तो उन्हें मेरी जरूरत पड़ती….।

बस इतना सा काम था मेरा ।

उनकी कोठी से फैक्ट्री लगभग बीस किलोमीटर दूर थी ।कभी कभार मैडम शॉपिंग के लिए  मॉल में जाती तो मुझे जाना होता था ।

मुझे एक बढ़िया सा कमरा दे दिया गया था। खाना में उनकी कोठी में ही खा लेता था । 

एक दिन बाहर तेज बारिश हो रही थी हवा चल रही थी खिड़कियां दरवाजे बंद थे…..। 

मैं मैडम के पास था ……।

इस तेज बारिश में जमीन भीग रही थी….। प्यासी बंजर धरती न जाने कितने दिनों के बाद बारिश  में भीगकर अपनी प्यास बुझा रही थी….।

एक महीने बाद पता चला मैडम प्रेग्नेंट थी…।

इस खुशी के गवाह हम तीन लोग थे ।…मैं मैडम और साहब…।

क्योंकि मैं पहाड़ से था इसलिए सारे  कर्मचारी मुझे पहाड़िया कहते । मैडम इसको पहाड़ से लाई है….।

सारे मुझे मेरे मनमोहन नाम से नहीं अपितु  पहाड़िया के नाम से जानते पहचानते थे ।

सभी कर्मचारी यह जानते थे कि मैं मैडम और साहब का खास आदमी हूं । सभी कहते -“साहब और मैडम इसे स्वयं पहाड़ से लाए हैं।”

इसलिए सब कर्मचारी मुझसे भय खाते थे।

किसी को मुझे बोलने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि सभी को अपनी नौकरी प्यारी थी।

इसी बीच एक दुर्घटना घट गई।

साहब फैक्ट्री से रात को घर आ रहे थे उस दिन मैं किसी और काम की वजह से उन्हें लेने नहीं गया था ।कोई दूसरा ड्राइवर उन्हें ला रहा था रास्ते में एक्सीडेंट हो गया और साहब मौके पर ही दम तोड़ गए….।

मैडम पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था इतना बड़ा कारोबार चलाना इतना आसान भी नहीं था… ।

…फिर भी मेरे हौसले की वजह से उसने खुद को संभाल लिया और अपने कारोबार को चलाया ही नहीं और भी बढ़ा लिया।

नौ महीने बाद उनके लड़का हो गया था, इस सारी संपत्ति का इकलौता वारिस…..।

धीरे-धीरे समय बीतने लगा। बेटा बड़ा होने लगा। हम दोनों का प्यार मर्यादा में रहा…।  मेरी शादी की उम्र भी निकलती गई। मैंने शादी नहीं की ।

भाई भाभी ने कई बार कहा भी…, ।परंतु मैंने उन्हें हर बार टाल दिया…।

सामाजिक तौर पर मैं अविवाहित था…।

समय तो पंख लगाकर उड़ रहा था । लड़का जवान हो गया । पढ़ लिखकर शादी के काबिल हो गया था । अब वह अपना कारोबार संभालने लगा था…।

और हम दोनों बूढ़े होने लगे थे …।

कई कर्मचारी रिटायर होकर चले गए थे ।कुछ नौकरियां छोड़ कर चले गए थे ।परंतु मैं आज भी उनके घर में सबसे पुराना ड्राइवर इस हवेली में रह रहा था….।

फिर एक दिन बेटे की शादी हो गई घर में बहू आ गई..।

न जाने मैं किस जन्म का श्राप भोग रहा था ।

सब कुछ होते हुए भी मेरा यहां कुछ भी अपना नहीं था ।

मैं मैडम का ड्राइवर ही तो था “पहाड़िया….”।।

— अशोक दर्द 

अशोक दर्द

जन्म –तिथि - 23- 04 – 1966 माता- श्रीमती रोशनी पिता --- श्री भगत राम पत्नी –श्रीमती आशा [गृहिणी ] संतान -- पुत्री डा. शबनम ठाकुर ,पुत्र इंजि. शुभम ठाकुर शिक्षा – शास्त्री , प्रभाकर ,जे बी टी ,एम ए [हिंदी ] बी एड भाषा ज्ञान --- हिंदी ,अंग्रेजी ,संस्कृत व्यवसाय – राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हिंदी अध्यापक जन्म-स्थान-गावं घट्ट (टप्पर) डा. शेरपुर ,तहसील डलहौज़ी जिला चम्बा (हि.प्र ] लेखन विधाएं –कविता , कहानी , व लघुकथा प्रकाशित कृतियाँ – अंजुरी भर शब्द [कविता संग्रह ] व लगभग बीस राष्ट्रिय काव्य संग्रहों में कविता लेखन | सम्पादन --- मेरे पहाड़ में [कविता संग्रह ] विद्यालय की पत्रिका बुरांस में सम्पादन सहयोग | प्रसारण ----दूरदर्शन शिमला व आकाशवाणी शिमला व धर्मशाला से रचना प्रसारण | सम्मान----- हिमाचल प्रदेश राज्य पत्रकार महासंघ द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए पुरस्कृत , हिमाचल प्रदेश सिमौर कला संगम द्वारा लोक साहित्य के लिए आचार्य विशिष्ठ पुरस्कार २०१४ , सामाजिक आक्रोश द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में देशभक्ति लघुकथा को द्वितीय पुरस्कार | इनके आलावा कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित | अन्य ---इरावती साहित्य एवं कला मंच बनीखेत का अध्यक्ष [मंच के द्वारा कई अन्तर्राज्यीय सम्मेलनों का आयोजन | सम्प्रति पता –अशोक ‘दर्द’ प्रवास कुटीर,गावं व डाकघर-बनीखेत तह. डलहौज़ी जि. चम्बा स्थायी पता ----गाँव घट्ट डाकघर बनीखेत जिला चंबा [हिमाचल प्रदेश ] मो .09418248262 , ई मेल --- [email protected]