कहानी

तरकीब

सीमा और सुंदर अपनी आदत के अनुसार कम्बल में से मुँह निकाल कर देख लेते ,कोई चहल पहल न देख कर फिर सो जाते, क्योंकि दोनों बहुत ही आलसी थे, और घर का कोई भी काम इन दोनों को करना पसंद नहीं था।        लेकिन आज दोनों बड़ा परेशान हो उठे, जबसुबह के करीब साढ़े नौ बज गए थे और खटपट, न कोई  आवाज न तो पूजा की घण्टी और न ही किचन में से बर्तनों की खनक।      आखिरकार दोनों भाई बहन माजरा समझने के लिए दबिस्तर से निकलकर आए तो देखा, मम्मी हॉल में बैठ कर अखबार पढ़ रही हैं ।     उन्होंने पूछा -मम्मी आपने आज हमें उठाया  भी नही!भगवान की पूजा भी नहीं हुई। नाश्ता भी नहीं बना  न ही चाय की खुशबू आई । कोई बात है क्या है?      मम्मी ने गम्भीर मुद्रा में कहा हाँ! कुछ नहीं, आज बहुत खास बात है। आज भगवान ने मुझसे कहा-बच्चों को सोने दो।बिना घण्टी बजाए पूजा पाठ कर लो।सो मैंने कर लिया और तुम दोनों को नहीं जगाया      उन्होंने यह भी कि कहा सोना आवश्यक है ,और कुछ नहीं खास नहीं, वैसे भी तुम दोनों को मेरे हाथ का बना हुआ नाश्ता व खाना भी तो पसंद भी नहीं आता। इसलिए आज से अब मैं कोई काम नहीं करुंगी, न ही तुम लोगों को कुछ कहूंगी, तुम दोनों जो मन में आते , आजादी से करो।     इतना सुनते ही दोनों के चेहरों का रंग पक्का पड़ गया।वे कुछ नहीं बोल पा रहे थे।कुछ उपाय भी नहीं सूझ रहा था मम्मी को मनाने का।    अब तो पापा भी वहाँ आ गए।आते ही बोले,अरे आज आप लोग अपने आप उठ गए ।बहुत अच्छी  बात है।अब चलो अपनी पसंद का चाय नाश्ता भी अपने आप बना लो।       दोनों जड़वत बैठे रह गए क्योंकि उन्हें तो कुछ बनाना तो आता ही नहीं था।       पापा ने अभिनय करते हुए कहा – अरे भाई! अपने साथ हम दोनों के लिए भी कुछ बना लेना, और हां हमारे लिए भी आधी आधी कप चाय बढ़ा कर बना लेना।        तब मम्मी बीच में ही बोल पड़ी, अरे नहीं रहने दो हम लोग तुम्हारे चाचा के घर जा रहे हैं। अब हम एक सप्ताह वहीं रहेंगे। तुम लोग अपने ढंग से खाने पीने की व्यवस्था कर लेना।      लेकिन मम्मी… ! सुंदर कुछ कहते हुए रुक गयातो सीमा ने बात को आगे बढ़ाया। लेकिन आप लोग हमें छोड़कर ऐसे कैसे जा सकते हैं?          ऐसे कैसे का क्या मतलब है? आप दोनों भी तो अपने मन मुताबिक ही हर काम करते हो और हमसे यह चाहते हो कि हम तुम दोनों से पूछकर कुछ करें। क्यों?        हमारे कहने का मतलब यह नहीं था मां?    तुम्हारे कहने के मतलब से मुझे कुछ भी नहीं लेना देना। तुम लोग अपने आप को पेइंग गेस्ट समझते हो, उपर से अपने सारे काम धाम, सुख सुविधा के लिए रुपए भी हमीं से लेते हो। न तुम दोनों को हमसे कोई मतलब है न खुद से कोई मतलब। तुम दोनों को अपने भविष्य की चिंता नहीं है। कल को जब हम नहीं होंगे तो तुम दोनों क्या करोगे, जीवन की अन्य छोटी छोटी जरूरतें तुम्हें महसूस ही नहीं होती, जिसके बिना जीवन अधूरा ही नहीं अव्यवस्थित भी होती है।      सीमा के पापा ने बीच में बात काटते हुए कहा- क्यों परेशान होती हो।बेटा तो बेटा है, बेटी के भी तो नखरे नहीं मिल रहे हैं, इसे तो इतना भी पता नहीं कि उसे भी दूसरे घर जाना है, उसका भी घर परिवार होगा।तब इस तरह जीवन नहीं कटेगा। इसे तो चाय तक बनाना नहीं आता, और न ही यह सीखना चाहती है। मां को नौकरानी समझ रही है।     तुम दोनों नौकरी के अलावा एकदम आजाद रहना चाहते हो, हमें तुम दोनों से अब कुछ नहीं कहना है। बस! तुम लोग अपना अपना देखो और हमें मुक्त करो।        तभी बाहर से गाड़ी का हार्न सुनाई पड़ा। सुंदर बाहर निकला तो देखा चाचा आ रहे हैं। उसने चाचा के पैर छुए।      दोनों अंदर आ गये। तब सुंदर के चाचा ने उसके पापा से कहा- मुझे थोड़ी देर हो गई भैय्या, क्षमा कीजिए और चलिए।       सुंदर की मम्मी उठी और कमरे में जाकर एक बैग घसीटकर ले आईं और बोली इसे ले चलो भैया।       सुंदर और सीमा अपनी मम्मी से लिपटकर रोने लगे, हमें माफ कर दो मां । अब हम आपकी हर बात मानेंगे, और आपको शिकायत का कोई मौका नहीं देंगे।          उसकी मां तो कुछ नहीं बोली, लेकिन उसके चाचा ने जरुर कहा कि बेटा तुम्हारी बात का हम विश्वास क्यों करें? तुम दोनों तो अक्सर ऐसा ही करते हो। इस बार तो भैय्या भाभी जरुर जायेंगे।        प्लीज़ चाचू! सीमा ने हाथ जोड़कर विनती की       देख बेटा! एक शर्त पर ही हम मान सकते हैं। तुम दोनों भी हमारे साथ चलो या जब मन करे आ जाना, लेकिन अगले तीन दिन तक घर बाहर की हर जिम्मेदारी तुम दोनों उठाओगे। तुम्हारी चाची और मां भी कुछ नहीं करेंगी, न ही हम दोनों भाई। जो भी हो, जैसा भी हो, तुम दोनों जो भी बनाकर खिलाओगे, हम खाकर संतोष कर लेंगे, पर दया बिल्कुल नहीं दिखाएंगे और हां घर के सारे काम तुम दोनों को ही करना होगा।अब हम लोग चलते हैं और तुम दोनों सोच विचार कर लो और यदि मेरी शर्त स्वीकार है तो आ जाना अन्यथा कभी मत आना, भैया भाभी भी हमारे साथ ही रहेंगे।और तीनों बाहर निकल गाड़ी में बैठे और चले गए।    सुंदर और सीमा तीनों को जाते देखते रहे।  

*सुधीर श्रीवास्तव

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