कविता

कविता

तुम भी पागल मैं भी पागल।
पागल अपनी प्रीत पिया।
याद रखो बस उन पलों को।
वो वक्त जो हमने साथ जिया।

तुम मुझ से सब कुछ ले लो।
मांगूं न तुम से कुछ भी पिया।
क्यों कर रखें हिसाब उसका।
जिसने जिसके साथ किया ।

बदले की नहीं भावना मन में।
जो किया निर्मल मन से किया।
मांगा जो भी जिसने जब दीक्षित।
मूंद के आंखें सब है उसको दिया।

सुदेश दीक्षित

बैजनाथ कांगडा हि प्र मो 9418291465