ग़ज़ल
हर ज़मीन के साथ आसमान होता है।
तन्हा रहना कहाँ किसी का अरमां होता है।
क्यों नहीं बदलता कारवां मर्ज़ी से कभी,
यूँ सब का हर जगह कहाँ सम्मान होता है।
वो तारीफ भी इस तरह करते हैं हमारी,
पाकर लगता है हम पे ऐहसान होता है।
लो चल दिए हम भी होकर रुसवा यहाँ से,
किसी के सब्र का कितना इम्तिहान होता है।
नहीं आता दूर जाकर भी भूल जाना क्यों,
दूर तक लगता है जैसे शहर वीरान होता है।
— कामनी गुप्ता