ग़ज़ल
ज़िक्र उनका वह जो करते रहे
क्षण- क्षण हम तो निखरते रहे|
रौनकें चेहरे की न देख ले कोई
हम तो बस सबसे छिपते रहे|
आनन रक्तिम सा हो गया था
अधरों पर कंपन होते रहे|
नज़रे जो नजरों से जा मिली
दरिया में नैनो की डूबते रहे|
फिर जो गले लगाया इस कदर
साँसे एक दूजे में घुलते रहे|
लाख संभाला था इस दिल को
आगोश में उनकी पिघलते रहे|
अब मीरा कहाँ बची सिर्फ मीरा
रंग में बस उनके ही रँगते रहे|
— सविता सिंह मीरा