धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

होली : भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख त्यौहार

कोई भी उत्सव और त्योहार धर्म से ज्यादा मनुष्य के प्रेम और जुनून को जागृत करता है। हमारे मुल्क भारत में होली भी एक त्योहार के रूप में  बढ़ चढ़ मनाया जाता है, इसलिए इस मौके पर हिंदू और मुसलमानों के बीच अंतर करना न्याय संगत  नहीं है। क्योंकि ये त्योहार होली रंगों और खुशियों का त्योहार है । मुहब्बतों का त्यौहार  भाई चारे  का त्योहार है।  यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत, सर्दियों के  मौसम की बिदाई ,  और बसंत  ऋतु के आगमन की खुशी,  एक  दूसरे से मिलने, मुस्कुराने,खेलने और हंसने, क्षमा करने और क्षमा मांगने और टूटे हुए रिश्तों को फिर से जीवंत करने का प्रतीक है।  इसे अच्छी फसल के लिए  ईश्वर को धन्यवाद देने के रूप में भी मनाया जाता है। होली खास हिंदू त्यौहारों में से एक है। यह खास तौर  से हिंदुस्तान और नेपाल देशों में मनाया जाता रहा है। 

एक पहलू यह भी है कि होली एक वसंत त्योहार है, जो सर्दियों के मौसम के अंत में मनाया जाता है।   यानी सर्दियों का मौसम एक तरह से बिदाई ले रहा होता है।दूसरी ओर, यह ख़रीफ़ सीज़न की फसल का त्यौहार भी है। लेकिन इस त्यौहार की पृष्ठभूमि बहुत दिलचस्प है। ऐसा कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप नामक एक प्राचीन राजा की पूजा से प्रसन्न होकर देवताओं ने उसे एक उपहार या  वरदान दिया था कि न तो मनुष्य और न ही जानवर उसे मार सकते थे, वह न दिन में मरेगा, न रात में, न ही वह पृथ्वी पर मरेगा। न जल में, न वायु में, न घर के अन्दर मरेगा, न बाहर। हिरण्यकश्यप ने सोचा कि वह अब अमर है और कभी नहीं मरेगा।  यह सोचकर वह अहंकार से फूल गया और उसने अपने राज्य में क्रूरता का बाजार गर्म कर दिया।  यहां तक ​​कि उसने अपनी प्रजा को अपनी पूजा करने के लिए मजबूर करना शुरू कर दिया।

हालाँकि, उनके बेटे प्रह्लाद ने अपने पिता की पूजा करने से साफ़ इनकार कर दिया।  क्रोधित होकर, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को जलाकर मारने का आदेश दिया।  होलिका आग से प्रतिरक्षित थी, इसलिए वह प्रह्लाद को साथ लेकर आग में कूद गई। दर्शकों को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि आग ने प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया, लेकिन होलिका जलकर राख हो गई।  ऐसी परंपरा है कि अंतिम सांस लेने से पहले होलिका को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने प्रह्लाद से माफी मांगी।  प्रह्लाद ने  वादा किया कि उसका नाम हमेशा जीवित रहेगा।  ऐसा कहा जाता है कि ‘होली’ शब्द की उत्पत्ति होलिका के नाम से हुई है।   

जब भगवान विष्णु का धैर्य समाप्त हो गया, तो एक दिन उन्होंने विद्रोही राजा को मार डाला।  आख़िर कैसे? भगवान विष्णु ने रचना की कि गोधूलि बेला (न दिन, न रात) में नरसिंह (आधा मनुष्य, आधा सिंह) (न मनुष्य, न पशु) का रूप धारण करके, अपनी गोद में लेकर (न पृथ्वी पर, न जल में, न वायु में), राजा का गला घोंट दिया। घर की दहलीज (न तो घर के अंदर और न ही बाहर)।

होली, भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख त्योहार है। जो रंगों का उत्सव मनाने के लिए मनाया  जाता है। यह त्यौहार हिन्दू पंचांग के फाल्गुन मास की पूर्णिमा को  भारत व अन्य कई देशों में धूमधाम से मनाया जाता है। होली के रंग भी प्रतीकात्मक हैं।  लाल रंग प्रेम और उर्वरता का प्रतीक है, हरा प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है, पीला भोजन का प्रतीक है, जबकि नीला रंग भगवान विष्णु से संबंधित होने के कारण धर्म और आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करता है।

— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह 

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

वालिद, अशफ़ाक़ अहमद शाह, नाम / हिन्दी - मुश्ताक़ अहमद शाह ENGLISH- Mushtaque Ahmad Shah उपनाम - सहज़ शिक्षा--- बी.कॉम,एम. कॉम , बी.एड. फार्मासिस्ट, होम्योपैथी एंड एलोपैथिक मेडिसिन आयुर्वेद रत्न, सी.सी. एच . जन्मतिथि- जून 24, जन्मभूमि - ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा , कर्मभूमि - हरदा व्यवसाय - फार्मासिस्ट Mobile - 9993901625 email- [email protected] , उर्दू ,हिंदी ,और इंग्लिश, का भाषा ज्ञान , लेखन में विशेष रुचि , अध्ययन करते रहना, और अपनी आज्ञानता का आभाष करते रहना , शौक - गीत गज़ल सामयिक लेख लिखना, वालिद साहब ने भी कई गीत ग़ज़लें लिखी हैं, आंखे अदब तहज़ीब के माहौल में ही खुली, वालिद साहब से मुत्तासिर होकर ही ग़ज़लें लिखने का शौक पैदा हुआ जो आपके सामने है, स्थायी पता- , मगरधा , जिला - हरदा, राज्य - मध्य प्रदेश पिन 461335, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल मगरधा, पूर्व प्रधान पाठक उर्दू माध्यमिक शाला बलड़ी, ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी, कम्युनिटी हेल्थ वर्कर मगरधा, रचनाएँ निरंतर विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 30 वर्षों से प्रकाशित हो रही है, अब तक दो हज़ार 2000 से अधिक रचनाएँ कविताएँ, ग़ज़लें सामयिक लेख प्रकाशित, निरंतर द ग्राम टू डे प्रकाशन समूह,दी वूमंस एक्सप्रेस समाचार पत्र, एडुकेशनल समाचार पत्र पटना बिहार, संस्कार धनी समाचार पत्र जबलपुर, कोल फील्डमिरर पश्चिम बंगाल अनोख तीर समाचार पत्र हरदा मध्यप्रदेश, दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद नगर कथा साप्ताहिक इटारसी, में कई ग़ज़लें निरंतर प्रकाशित हो रही हैं, लेखक को दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार दैनिक जागरण ,मंथन समाचार पत्र बुरहानपुर, और कोरकू देशम सप्ताहिक टिमरनी में 30 वर्षों तक स्थायी कॉलम के लिए रचनाएँ लिखी हैं, आवर भी कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ पढ़ने को मिल सकती हैं, अभी तक कई साझा संग्रहों एवं 7 ई साझा पत्रिकाओं का प्रकाशन, हाल ही में जो साझा संग्रह raveena प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं, उनमें से,1. मधुमालती, 2. कोविड ,3.काव्य ज्योति,4,जहां न पहुँचे रवि,5.दोहा ज्योति,6. गुलसितां 7.21वीं सदी के 11 कवि,8 काव्य दर्पण 9.जहाँ न पहुँचे कवि,मधु शाला प्रकाशन से 10,उर्विल,11, स्वर्णाभ,12 ,अमल तास,13गुलमोहर,14,मेरी क़लम से,15,मेरी अनुभूति,16,मेरी अभिव्यक्ति,17, बेटियां,18,कोहिनूर,19. मेरी क़लम से, 20 कविता बोलती है,21, हिंदी हैं हम,22 क़लम का कमाल,23 शब्द मेरे,24 तिरंगा ऊंचा रहे हमारा,और जील इन फिक्स पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित सझा संग्रह1, अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा,2. तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी, दो ग़ज़ल संग्रह तुम भुलाये क्यों नहीं जाते, तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें, और नवीन ग़ज़ल संग्रह जो आपके हाथ में है तेरा इंतेज़ार आज भी है,हाल ही में 5 ग़ज़ल संग्रह रवीना प्रकाशन से प्रकाशन में आने वाले हैं, जल्द ही अगले संग्रह आपके हाथ में होंगे, दुआओं का खैर तलब,,,,,,,