जीवन को अपनाना सीखो
जीवन की बस यही कहानी।
रंक बनें या राजा रानी।।
रोम-रोम हो जाय प्रफुल्लित।
अगले क्षण भ्रम करता विस्मित।।
कभी पीर सम घटा सताती।
नयन झड़ी जस धार बहाती।।
सहसा पुष्पित होती काया।
फिर भव सागर कसती माया।।
पृथक रहें अंबर ज्यों सारे।
सूरज ग्रह अरु चंद्र सितारे।।
सृष्टि नीति के पथ पर चलते।
एक दूसरे से ना जलते।।
शीतल-गर्म पवन के झोंके।
किसमें दम जो इनको रोके!
नित्य धर्म है बहते रहना।
हों गतिशील सदा है कहना।।
चलती ऐसे जीवन गाड़ी।
अफसर हो या रहे अनाड़ी।।
प्रतिपल तुम मुस्काना सीखो।
जीवन को अपनाना सीखो।।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”