ग़ज़ल : दिल में दर्द जगाता क्यों है
गर दवा नहीं है दर्द की तुझ पे
दिल में दर्द जगाता क्यों है
जो बीच सफर में साथ छोड़ दे
उन अपनों से मिलवाता क्यों है
क्यों भूखा नंगा व्याकुल बचपन
पत्थर भर पेट खाता क्यों है
अपने , सपने कब सच होते
तन्हाई में डर जाता क्यों है
चुप रह कर सब जुल्म सह रहे
अपनी बारी पर चिल्लाता क्यों है
— मदन मोहन सक्सेना
बहुत अच्छी ग़ज़ल !
आप का तहे दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ, हार्दिक आभार
सक्सेना जी , ग़ज़ल अच्छी लगी .
आप का बहुत शुक्रिया होंसला अफजाई के लिए