गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आग , पानी, आसमाँ, मिट्टी, हवाएं ले गया ।
वो मेरे जीने की सब संभावनाएं ले गया ।

बारिशें, बादल, समंदर, रेत, दरिया, चाँदनी ।
संगदिल मौसम लबों से प्राथ॔नाएं ले गया ।

दर्द, आँसू, धूप, आँधी, बेरुखी , तनहाइयाँ ।
सब मुझे देकर मेरी शुभकामनाएँ ले गया ।

चाहतें, श्रद्धा, समर्पण, नेह पूजा , भावना ।
एक झोंका उम्र भर की आस्थाएं ले गया ।

गरदिशें, लाचारियाँ , दुशवारियाँ, नाकामियाँ।
वक्त का सैलाब सारी साधनाएं ले गया ।

 

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    शानदार ग़ज़ल !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है जी.

Comments are closed.