कविता

बूँद से मोती बनो.

समुद्र के पानी की इक बूँद ,

अशुद्ध पानी की इक खारी बूँद।,

सूर्य की तपस सह कर ,

वाष्प का रूप धर कर ,

हवा के थपेड़ों को सहती हुई ,

आकाश की और उड़ती हुई,

बन गई एक बादल का अंश,

और फिर टकरा कर पर्वत से,

फिर से बन गई एक शीतल बूँद,

अब तो मिला पावन ,स्वच्छ ,

और विशुद्ध निर्मल रूप ,

मिट गया सारा दोष और विकार,

रुख कर लिया उसने-

फिर धरती  की ओर –

किसी प्यासे की प्यास बुझाने,

कोई हरा भरा खेत लहलहाने 

 

औरअब तो किस्मत से-

आ पड़ी सीप के मुंह में,

और बन गई एक अनमोल मोती,

हमें दे गई एक सन्देश — आगे बड़ो,

तपस सहो, थपेड़े सहो ,

पर्वतो से टकरा जाओ,

दूर कर सारे दोष और विकार—

अपनी मेहनत और लगन से —

आगे बढ़ते हुए,

सफलता के शिखर पर पहुँच जाओ,

अनमोल मोती बन जाओ,—जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

One thought on “बूँद से मोती बनो.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

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