गीतिका/ग़ज़ल अजय अज्ञात 03/05/2021 ख़तरे में है हर मुहल्ला हर गली ख़तरे में है आजकल हर आदमी ख़तरे में है घेर रक्खा है ग़मों के झुंड ने Read More
गीतिका/ग़ज़ल अजय अज्ञात 05/10/2020 ग़ज़ल ख़ाली कभी भरा हुआ आधा दिखाई दे चाहे जो जैसा देखना वैसा दिखाई दे जैसे सराब दूर से दर्या दिखाई Read More
गीतिका/ग़ज़ल अजय अज्ञात 22/04/2020 ग़ज़ल जब से हमारी सोच के पैकर बदल गये तब से निशातो क़ैफ़ के मन्ज़र बदल गये अह्सास के वो नर्म Read More
गीतिका/ग़ज़ल अजय अज्ञात 01/01/2020 ग़ज़ल बाग़ में इक भी शजर बाक़ी कहाँ छाया,गुल, बर्गो समर बाक़ी कहाँ इनमें अहसास ए ज़रर बाक़ी कहाँ बाप का Read More
गीतिका/ग़ज़ल अजय अज्ञात 02/08/2019 ग़ज़ल घर घर चूल्हा चौका करती करती सूट सिलाई माँ बच्चों खातिर जोड़ रही है देखो पाई पाई मां बाबूजी की Read More
गीतिका/ग़ज़ल अजय अज्ञात 03/11/2018 ग़ज़ल आती न किसी काम, शराफ़त है अब मेरी बदनामियों से बढ़ रही शुहरत है अब मेरी जीने लगा हूँ अपनी Read More
गीतिका/ग़ज़ल अजय अज्ञात 03/11/2018 ग़ज़ल हक़गो होने का जो अक्सर दावा करते सच सुन कर उन लोगों के दिल दहला करते अपनों से हर बात Read More
गीतिका/ग़ज़ल अजय अज्ञात 01/08/2018 ग़ज़ल उसका दूभर दुनिया में जीना हुआ पत्थरों के बीच जो शीशा हुआ साथ कोई दे न दे मेरा यहाँ साथ Read More
गीतिका/ग़ज़ल अजय अज्ञात 08/04/2018 ग़ज़ल राहों में कभी खार बिछाती है ज़िंदगी फूलों के कभी हार सजाती है ज़िंदगी मुर्गे कफस को उड़ना सिखाती है Read More
गीतिका/ग़ज़ल अजय अज्ञात 11/06/2017 ग़ज़ल आज इस वातावरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद इस क्षरित पर्यावरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद दौड़ते रहते हैं हरदम Read More