मज़बूरी
दिखते हैं.. पढ़े-लिखे, और बिन डिग्री वाले भी, बेचते हुए,,, अपना समय और काबलियत कभी पात्र, तो कभी अपात्र
Read Moreहो उत्साहित खूब धूमधाम से इक बार,,, फिर से सभी ने है दीपावली का पर्व मनाया! जला के दीए और
Read Moreमां बनते ही हर महिला, जाति-विहीन हो जाती है! शूद्र-क्षेत्रीय-ब्राह्मण-वैश्य बन रोज़ाना नित नई भूमिका वो निभाती है!! पालन
Read More“सुनो ! मां दीवाली पर यहां आने की बात कर रही है। कह रही थी कि सुनील के बच्चे भी
Read Moreप्रकृति से खिलवाड़ कर पहाड़ों जंगलों को काट कर विकास का दीप जलाया है ..पर यह हमने क्या पाया है।
Read Moreदे माता आशीष हो कल्याण भवतारिणी दुष्ट संहारिणी जय मां जगदम्बे मैं ज्योति जलाऊं आरती गाऊं पुजूं तुझे नमन दुर्गा
Read Moreहां! सिमटा है मुझमें भी… इक सागर। जो रह कर मौन करता है समाहित खुद में,,, अनगिनत … तर्कों-
Read Moreहां! मुखर हो गई है,,, मेरी लेखनी लिखना नहीं चाहती… यह कविता! कैसे लिखे सुंदरता पर यह जब रोज मरे…
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