कविता

मुझमें भी… इक सागर

 

हां! सिमटा है

मुझमें भी… इक सागर।

जो रह कर मौन

करता है समाहित

खुद में,,,

अनगिनत

… तर्कों- वितर्कों को।

 

नदियों समान

लोग लाते हैं

संग अपने

मीठे पानी की तरलता

और कभी

…गरल और कचरा ।

 

कुतर्कों से उत्पन्न

“वेग – द्वेष” से

जब सुलगता है मन,

और खौलने लगता है खून,,,

तब सागर समान ही

कभी बन सुनामी,

और कभी बन ज्वालामुखी

…फट पड़ती हूं मैं।

 

पर अक्सर और आदतन

समेटने रिश्तों की सीपियाँ

लहरों के हलके

उतार – चढ़ाव सम

पी जाती हूं गरल

… चुपचाप

 

सच में,,,

बहुत कठिन है

जलधि सा बनना

चाहिए इसके लिए

गहराई, विशालता और

… आत्मसात का गुण।।

 

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed