प्रकृति प्रकोप
अतृप्त धरा अति अकुलाई वर्षा रूठ नभ में खिसियाई फूलों की डाली मुरझाई पौधों ने भी शोक मनाई । क्यों
Read Moreअतृप्त धरा अति अकुलाई वर्षा रूठ नभ में खिसियाई फूलों की डाली मुरझाई पौधों ने भी शोक मनाई । क्यों
Read Moreवह सोने की कोशिश कर रहा था परंतु उसे नींद नहीं आ रही थी। घर के सारे खिड़की दरवाजे उसने
Read Moreआँखों से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था आँखों में मोतियाबिंद उतर आया था । वे टटोलते हुए अपनी दवा
Read More“क्या सोच रही हो बेटा ; सारी परिस्थितियों पर गौर करने के बाद एकमात्र विकल्प अब तेरा विवाह ही बचा
Read Moreबड़ी देर से पार्क के एक कोने में बैठे उस जोड़े को देखकर उनकी आँखें चमक रही थी। कभी रोम-रोम
Read Moreघड़ी दो घड़ी आँसू बहाकर संवेदना प्रकट कर दिये काश अपनों का दर्द होता तो पूरी कायनात रो पड़ती बुद्ध
Read Moreतेरी पहेली सुलझाऊँ कैसे ए जिंदगी तुझे रिझाऊँ कैसे वक्त ने तन्हाई दी हमें अब खिलौनों से खेलकर जिंदगी तुझे
Read Moreहद से बढ़कर सरहद से प्यार है माँ की ममता सा दुलार है। कभी माँ का लाडला हुआ करता था
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