लेखनी ठिठक गई (कविता)
हूँ कलम का सिपाही फिर क्यों हाथ थरथड़ाने लगे हैं ? कानों मे बेबस निर्भया की मौन सिसकी आज भी
Read Moreहूँ कलम का सिपाही फिर क्यों हाथ थरथड़ाने लगे हैं ? कानों मे बेबस निर्भया की मौन सिसकी आज भी
Read Moreभागीरथी की आँखें भर आई फिर भी अश्रुकण निकल नहीं रहे थे । संपूर्ण भू धरा पर बरखा असंतुलित एवं
Read Moreझूठ की बुनियाद पर टिकी है जिंदगी कभी खुद अपने आप से झूठ कभी प्रभू की विनती में झूठ कभी
Read Moreदीपावली के दिन सुबह से भाग-दौड़ करके मानुषी बुरी तरह थक गई थी । सारे घर आँगन में दीप जलाकर
Read More