कविता – शब्दों की शक्ति
खंजर जैसे पैने लफ़्ज न रखना अपने कोष में न जाने कब चल जाएँ ये नासमझी व जोश में बरसों
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Read Moreरात के दस बज गए थे। दिसंबर की ठंडी रात पहाड़ों में लोग इतनी देर तक नहीं जागते खासकर गांवों
Read Moreयहां लॉक डॉन क्या लगा पूरा लोक ही सन्नाटों से भर आया है । लोक की सारी भागदौड़ सिमट सी
Read Moreआज नेता जी फिर हमारे गाँव आ रहे थे | दस बर्ष के अंतराल बाद | पहली बार वह तब
Read Moreतल तक कविवर जाया करना ढूंढ के मोती लाया करना नज्में लिखना गाया करना जग को सच समझाया करना इतिहास
Read Moreतुम चाहते हो कि हरेक आंगन तक गुनगुनी धूप पहुंचे ताकि कोई ठिठुरती सर्दी में न कंपकंपाये तुम चाहते हो
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