कौन जाने …..(कविता)
यह बस्तियों की गोद में बैठे दुबके हुए सन्नाटे कब उठेंगे कौन जाने … दमघोटू हवा के भीतर कब तक
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Read Moreखंजर जैसे पैने लफ़्ज न रखना अपने कोष में न जाने कब चल जाएँ ये नासमझी व जोश में बरसों
Read Moreरात के दस बज गए थे। दिसंबर की ठंडी रात पहाड़ों में लोग इतनी देर तक नहीं जागते खासकर गांवों
Read Moreयहां लॉक डॉन क्या लगा पूरा लोक ही सन्नाटों से भर आया है । लोक की सारी भागदौड़ सिमट सी
Read Moreआज नेता जी फिर हमारे गाँव आ रहे थे | दस बर्ष के अंतराल बाद | पहली बार वह तब
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