लालच और मोह
(लालच और मोह) अभी कुछ समय बाकी है प्रलयकाल में, समेट लो अपने सारे धन हाँ, तुमने यही तो सोचा
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Read Moreझुक जाती हैं नजरें शर्म से जब बहू बेटियों की इज्जत लूट ली जाती है, अपने ही समाज में, ये
Read Moreऔरत की जिंदगी किस्तों के जैसी है जहाँ पर जन्म लिया आँखे खोली वही से शुरू हो जाती है पहली
Read Moreकुछ सहेज रखे है मैंने अपने अन्तःमन के कोने में सपने पर आज न जाने क्यों रह-रह के ये चंचल
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