व्यंग्य – बड़ी रसीली, छैल- छबीली
आज भला मुझे कौन नहीं जानता ,पहचानता।जो जानता वह तो मानता ही मानता और जो नहीं जानता वह तो और
Read Moreआज भला मुझे कौन नहीं जानता ,पहचानता।जो जानता वह तो मानता ही मानता और जो नहीं जानता वह तो और
Read More-1- करके चोरी ‘विज्ञ’जन , बाँट रहे नित ज्ञान। स्वयं नहीं करते कभी,ऐसे विज्ञ महान।। ऐसे विज्ञ महान, ज्ञान की
Read Moreसूख रहे सब ताल -तलैया । प्यासी भटक रही गौरैया।। आसमान से बरसें शोले। मरते प्यासे पंछी भोले।। गरम तवे
Read Moreवृक्ष धरा के ओज हैं,वृक्ष अवनि – शृंगार। करते हैं इस सृष्टि का,सदा सृजन साकार।। पाँच अंग हैं वृक्ष के,
Read Moreसंसार में ‘मार’ की विकट मार भी अनंत है।इससे नहीं बचा कोई संत या असंत है।जैसा उसका नाम है। वैसा
Read Moreगर्मी में गागर की गरिमा। कौन न जाने उसकी महिमा। शीतल जल सबको है देती। प्यास देह की वह हर
Read Moreवासंतिक नवरात्र का, ‘शुभम’ सुहृद उपहार। दुर्गा माँ को पूजता, हर हिंदू परिवार।। जगदंबा नव रूप में, करतीं जन –
Read Moreहेंचू जी हय से सतराये। आँख दिखाते वे गुर्राए।। ‘घोड़ा जी तुम गर्दभवंशी। एक सदृश हम सब के अंशी। हमसे
Read Moreअतीत की बात हो गई ,जब लोग अपने से ज्ञान, गुण और आयु में बड़े, गुरुजन, माता -पिता , इष्ट
Read Moreहम सब अपने को इंसान कहते हैं।पशु -पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों से भी बहुत महान। इस धरती माता की शान।ज्ञान औऱ गुणों
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