गीतिका
गाने का ये गीत नहीं है। जब तक उर में तीत नहीं है।। रटते नित्य सनातन मुख से, जन –
Read Moreआओ अग्निवीर बन जाएँ, भारत माँ का भार उतारें। ढूँढ़ – ढूँढ़ दुश्मन को लाएँ, गिन – गिन कर नित
Read More-1- देश प्रेम को जगा न जाति भेद में मलीन। रंच मात्र राग द्वेष के न हो कभी अधीन।। पेट
Read Moreदेश का करने को उद्धार, हमें ही बढ़ना होगा मीत। उसे ही मिलता है गल हार, शृंग पर चढ़ता पाता
Read Moreमैंने दो – दो खरहे पाले। आधे गोरे आधे काले।। घर भर में वे दौड़ लगाते। दिखते कभी कभी छिप
Read Moreहरी घास में कीड़े पनपे, हर पल्लव छलनी होता। सुमन खिलें शाखा पर कैसे, सूखा है सुगंध – सोता।। पादप
Read Moreकभी आपने इस बात पर विचार किया है कि ‘क्याआदमी कभी सरल भी हो सकता है?’ अपने अध्ययन काल में
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