कुंडलिया – जननी प्रभु का रूप है
-1- माँ की ममता- मापनी,बनी नहीं भू मंच। संतति का शुभ चाहती,नहीं स्वार्थ हिय रंच नहीं स्वार्थ हिय रंच,सुलाती शिशु
Read More-1- माँ की ममता- मापनी,बनी नहीं भू मंच। संतति का शुभ चाहती,नहीं स्वार्थ हिय रंच नहीं स्वार्थ हिय रंच,सुलाती शिशु
Read Moreस्वेद बहाकर पेट पालता, रिक्शा भले चलाता है। एक पैर से आगे बढ़ता, दंड – सहारा पाता है।। चोरी
Read Moreदिखें रात में नभ में तारे। जाते कहाँ दिवस में सारे।। टिम-टिम करके करते बातें। अच्छी लगती हैं तब रातें।।
Read Moreपाजामे का नव अवतार। प्लाजो आया तज सलवार।। नए रूप में बड़ा निराला। रंग – बिरंगा नीला काला।। नीचे –
Read More-1- पढ़ना-लिखना छोड़कर, चमचा बनना ठीक नेता का अनुगमन कर,पकड़ एक ही लीक। पकड़ एक ही लीक,सियासत में घुस जाना।
Read Moreमेरे वतन की धूल को। मेरे वतन के फूल को।। मेरा नमन! मेरा नमन!! मेरा वतन ! अपना वतन!! हम
Read Moreलहराता है केतु तिरंगा, भारत की है शान। करती नमन नित्य तव संतति, मेरा देश महान।। मस्तक ऊँचा किए हिमाचल,
Read Moreअखाड़ा बना , न नगाड़ा बजा न मैदान में प्रतिद्वंद्वी का मजा, न कोई किसी से लड़ा या भिड़ा, पर
Read Moreदेखे नहीं बालियाँ, पौधे, गेहूँ, धान, कपास के। वे किसान को क्या समझेंगे, दिन जिनके संत्रास के।। टपके स्वेद गरम
Read Moreवे जमाने चले गए ,जब हम डर -डर कर जीते थे।अब हम पूरी तरह से निडर हो गए हैं। अब
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