व्यंग्य – सावन के अंधे
‘सावन के अंधे को सब हरा – ही- हरा दिखाई देता है’। यह कहावत आज- कल से नहीं प्राचीन काल
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Read Moreकर्मों का मंदिर मानव -तन, मन ही सुहृद पुजारी है। कर्मदेव की पूजा करता, जीवन भर आभारी है।। संत विवेकानंद
Read Moreदूल्हा आया ! दूल्हा आया!! सँग में बहुत बराती लाया।। घोड़ी पर दुलहा बैठा है। तना हुआ कुछ-कुछ ऐंठा है।।
Read Moreगई दिवाली जाड़ा आया। खेत,बाग़, वन,घर में छाया।। मोटे कंबल, शॉल, रजाई। टोपे, स्वेटर की ऋतु आई।। मफ़लर ने सिर
Read Moreइधर एक सप्ताह से अधिक समय हो गया ,ब्रह्मलोक में देव ऋषि नारद जी का पदार्पण नहीं हुआ था।यह विचार
Read Moreबैठे थे अनमने विधाता । जीव मात्र के जीवन- दाता।। वीणा की झनकार बजाते। हरी – नाम की टेर सुनाते।।
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