हास्य व्यंग्य

दोषी कोई और है, मैं नहीं

इस असार संसार में एक मात्र निर्मल प्राणी यदि कोई है, तो वह मनुष्य ही हो सकता है।इस बात को सिद्ध करने के लिए मनुष्य से अच्छा प्रमाण मिलना सम्भव नहीं है।उदाहरण के लिए यदि आपसे कोई गलत, अनैतिक,अनुचित, असामाजिक, अवैध,या देश,कानून औऱ समाज की दृष्टि में गलत कार्य जाने या अनजाने में हो जाता है, तो बिना सोचे समझे आप यही कहेंगे कि यह मैंने नहीं फलां व्यक्ति ने अथवा किसी औऱ ने किया है; मैंने नहीं किया।आप शत- प्रतिशत नकार जाएँगे कि उसे आपने ही अंजाम दिया है।किसी भी तरह आप अपना दोष स्वीकार नहीं करेंगे।स्वदोष स्वीकार न करने की यह कला,प्रवृत्ति या संस्कार मनुष्य मात्र में स्वभावगत है। आपके स्थान पर मैं या कोई अन्य व्यक्ति भी होगा तो वह भी वही करेगा ,जो आपने किया है।

यदि मनुष्य स्व दोषों को सहजता से स्वीकार कर लेता तो आज के संसार की दशा और दिशा कुछ और ही होती।ये कचहरियाँ, दीवानियाँ,अदालतें, जज ,अधिवक्ता,स्टाम्प वेंडर आदि कुछ भी न होते। हजारों लाखों लोगों का व्यवसाय ही चौपट हो जाता।अदालतें अदालतें न होकर दंगल के मैदान हैं, जहाँ लड़ाई झूठ और झूठ के बीच नहीं, बल्कि सच और सच के बीच है। वादी अपने को सच कहता है,और प्रतिवादी अपनी सचाई का बिगुल बजाता है । फिर ये झूठ क्या वकील साहब के काले कोट की जेब में छिपा बैठा रहता है। यदि प्रतिवादी के ख़िलाफ़ मजबूत प्रमाण मिल गए और उन्होने सही सिद्ध भी कर दिया तो प्रतिवादी पराजित हो जाता है।वह दोषी सिद्ध हो जाता है। यदि सहजता से उसके द्वारा अपना दोष स्वीकार कर लिया जाता तो कोर्ट कचहरी(जहाँ मुकदमा लड़ते लड़ते कच का हरण हो जाए)का इतना सारा बखेड़ा क्यों खड़ा होता। पर इससे कुछ लोगों का रोजगार चलना भी तो जरूरी था ,इसलिए दूध का दूध पानी का पानी करने के लिए काले कोटों के बीच सफेदी की लड़ाई करनी आवश्यक हो गई।

इसके विपरीत स्थिति में विचार करके देखें तो स्पष्टत: यह तथ्य प्रत्यक्ष होता है कि मनुष्य बुरे और बुरे से भी बुरे कार्य करने का दायित्व दूसरों पर डालता है।किन्तु यदि अच्छा कार्य करता है तो फोटो खिंचवा कर,वीडियों बनवाकर , अखबारों, टीवी और सोशल मीडिया पर प्रसारित करवा कर स्व श्रेय लूटने में पीछे नहीं रहता।मात्र स्वदोष का प्रक्षेपण ही दूसरों पर किया जाता है ।मनुष्य की इसी प्रवृत्ति की देन हैं ये समस्त प्रकार के कोर्ट, हाई कोर्ट ,सुप्रीम कोर्ट । इसका अर्थ यह भी हुआ कि कोर्ट अच्छे कार्य के लिए न होकर उसके दोषों को उजाकर करने और उसकी सचाई बाहर लाने के लिए ही बनाए गए हैं ,किन्तु क्या इन सबके बावजूद उसने गलत काम करना ,अपराध करना अथवा झूठ से दूर रहना छोड़ा है? इस कार्य में कोई कमी न आकर और भी बढ़ोत्तरी हुई है। आदमी दिन प्रति दिन किस दिशा में जा रहा है ;स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।उसके निरंतर दिशा – विवर्तन के कारण ही उसकी दशा का सुरूप कुरूप होता जा रहा है।
अपने को खटाई में न डालकर दूसरों को खटाई में झोंक देने का स्वभाव मनुष्य की काइयाँपन की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहा है।’मैं सुरक्षित बचा रहूँ , सब भाड़ में जाएँ।’ यह सोच उस आदमी की है जो बहुत अधिक धार्मिक,पवित्र, उदार,मानवतावादी, आध्यात्मिक, परोपकारी, जनसेवी और करुणाशील होने के दंभ में चूर रहता है। लेकिन जब समय ,कानून और न्याय का डंडा उसकी पूँछ उठाकर उसका नग्न यथार्थ जग जाहिर कर देता है ,तो उसे अपना मुँह छिपाने के लिए भी सुरक्षित जगह की खोज करनी पड़ती है।

इस प्रकरण की एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि पढ़े – लिखों और बिना पढ़े लिखों में कुछ तो अंतर अवश्य होता ही है। साधारणतः जितने काइयाँपन और चतुराई से पढ़ा -लिखा व्यक्ति स्वदोष पर आवरण डालने में कुशल होता है,उतनी कुशलता एक सीधा और सरल व्यक्ति नहीं दिखा पाता। पढ़ – लिख कर स्वदोषों को छिपाने की कलाओं, युक्तियों,बुद्धि – चातुर्य,जुगाड़बाजी आदि की मात्रा में कई गुना वृद्धि हो जाती है।पढ़ा ही इसीलिए जाता है। पढ़ा-लिखा व्यक्ति कोरी स्लेट नहीं होता।पढ़ लिख कर भी यदि कोई कोरी स्लेट बना रह गया तो उसका पढ़ना -लिखना ही अकारथ! इसलिए स्वदोष प्रक्षालनार्थ पढ़ाई एक अनिवार्य कर्म है।स्वदोष प्रक्षालन का साबुन है पढ़ाई।वही दोष के मैल को रगड़- रगड़ कर साफ़ कर देती है।इसलिए मनुष्य को खूब पढ़ना भी चाहिए ;क्योंकि वह अपने दोषों को दूसरों के सिर मढ़ने के संस्कार से इस मनुष्य यौनि में तो मुक्त हो नहीं सकता।सभी युगों में जो मनुष्य स्वदोषों को छिपाकर पर प्रक्षेपण में जितना प्रवीण होता है ,वह उतना ही बड़ा नेता, अधिकारी,कर्मचारी, आम या खास नर -नारी बन कर उभरता है।जिनकी कार गुज़रियों से टीवी ,अखबार, सोशल मीडिया आबाद रहता है।यदि विश्वास न हो तो आज का ही अख़बार उठाकर देख लीजिए, अथवा टीवी खोल लीजिए औऱ ज्यादा दूर न जाना चाहें तो हाथ के मोबाइल की झाँकियाँ देख लीजिए।वैसे भी इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं, ये संसार ही गुण- दोष मय है। ‘”जड़ चेतन गुण दोषमय,विश्व कीन्ह करतार। संत-हंस गुण गहहिं पय,परिहरि वारि विकार।। ”
अब आप और हम न तो संत हैं और न ही हंस हैं ; जो वारि- विकार को छोड़कर केवल दुग्ध पान ही करें। अपने अनिवार्य दोषों को ढँक पाने की कला भी न सीख पाए तो मनुष्य होने का लाभ ही क्या ? सबसे बुद्धिमान प्राणी होने का गौरव जो मिला हुआ है! जिसमें ‘स्वदोष -छिपावन -कला’ की प्रवीणता भी तो सम्मिलित है।

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040