ग़ज़ल
तेरे महलों के ठीक पीछे ही, हमने इक झोंपड़ी बना ली है सूना है घर ईमानदारी का, रोज़ बेईमान की
Read Moreस्वतंत्रता हमारा मूलभूत अधिकार है। स्वतंत्रता के कई रूप हैं जिनमें से एक रूप है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। दुर्भाग्यवश हमारे
Read Moreकोई अमीर है, कोई गरीब है बस अपना अपना नसीब है मुलाकात अपनी ना हो सकी तू भी फासलों पे
Read Moreतेरे ही वास्ते हर रोज मैं सौ बार मरता हूँ, तुझे ऐ जिंदगी हद से ज्यादा प्यार करता हूँ। माँ
Read Moreभारत माँ हम शर्मिंदा हैं कैंपस में लगते नारों पर घर ही में छुपे गद्दारों पर भाईयों के दिल में
Read Moreजेएनयू के परिसर में देखो कैसा अंधेर हुआ कुछ लोगों की नज़रों में इक कुत्ता कैसे शेर हुआ भारत देश
Read Moreप्रिय आत्मन्, हर बार तुम्हें पत्र लिखकर सोचता हूँ कि ये अंतिम पत्र है फिर दोबारा तुम्हें पत्र नहीं लिखूँगा।
Read Moreआओ, हम तुम इंसान बनें गैरों की बातों में आकर क्या कुछ ना हमने गवाया है हमने अपनी नादानी में
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